उपर दूर आसमां तन्हा
सामने गुजरगाह तन्हां
जिस्म तन्हा, जां तन्हा
आती हुई सबा तन्हा
पहले भी हम थे तन्हा
आज भी अकेले हैं
सुना हर यूं लम्हा क्यूं?
मेरा मुकद्दर तन्हा क्यूं?
खुद को पल-पल ढूंढ रहा
मेरे चारो तरफ़ मेले हैं
और जीने की चाह कहां?
बुझने की परवाह कहां?
ज़िन्दगी तो तभी जी ली
जब साथ-साथ खेले हैं।
- Those were the best days of my life….