कविता

जीवन की कुछ सच्चाईयां


रुक जाता है,नदी का प्रवाह समुंद्र में आकर।
चैन मिलता है,मुसाफिर को अपने घर आकर।।

पेट नही भरता लोगो का दौलत कमाकर।
पेट तो भर जाता है,चार निवाले ही खाकर।।

मौत ले जायेगी सभी को,एक दिन आकर।
लौटा नहीं है बंदा,मौत के घर वह जाकर।।

दर्शन करते हैं प्रभु के लोग मंदिर में जाकर।
सच्चे भक्त को प्रभु देते है दर्शन घर आकर।।

खाना खाने जाते हैं कुछ लोग होटलों में जाकर।
संतुष्टि मिलती है खाने में अपने ही घर आकर।।

जीवन की ये सच्चाईया,देखो तुम अजमाकार।
रस्तोगी ये सब कुछ लिखता है,खुद अजमाकर।।

आर के रस्तोगी