चिंतन

कुछ तथ्य……

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मनीष मंजुल

कुछ फिल्मों में

औरतों को वेश्यावृति करते हुए

दिखाया जाता है, औरतों ने तो कभी इसके

खिलाफ आवाज

नहीं उठाई।

किसी फिल्म में वैश्य वर्ग के

लोगों को सूदखोर,

लालची और बेईमान

दिखाया जाता है,

वैश्य और बनियाओं ने

तो कभी इसका विरोध नहीं किया।

पंडितों को पाखंडी और धूर्त

दिखाया जाता है,

इनकी तो कभी भावनाएं आहत

नहीं हुई।

ठाकुरों को क्रूर, अत्याचारी,

और

डाकू

दिखाया जाता है,

इस वर्ग ने तो कभी न्यायालय

का दरवाजा नहीं खटखटाया।

कमल हसन

ने “विश्वरूपम” में

मुसलमानों को आतंकवादी दिखाया गया है,

वह

भी अफगानिस्तान के,

जो कि दुनिया में

आतंकवाद की नर्सरी के रूप में

जाना जाता है

ऐसे में

हमारे

देश के मुसलामानों की भावनाएं कैसे

आहत हो गई,

समझ के परे है। जब आतंकवाद का कोई धर्म

नहीं होता, तो आप

आतंकवादियों को अपने धर्म

से जोड़ते ही क्यों हो ?