क्या बाकर्इ सीबीआर्इ से भयभीत हैं मुलायम

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mulayamसमाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव बार-बार सरकार और सीबीआर्इ के डर का राग अलाप रहे हैं। मुलायम के इस रहस्यमयी राग के अर्थ को समझना एकाएक मुश्किल है। क्योंकि जहां वे केन्द्र की सप्रंग सरकार द्वारा धमकाकर समर्थन लेने की बात करते हैं,  वहीं कभी लालकृष्ण आडवाणी तो कभी जनसंघ के संस्थापक श्यामाप्रसाद मुखर्जी की तारीफ में कसीदे काढते हैं। आखिर मुलायम वाकर्इ क्या चाहते हैं, यह साफ नहीं हो पा रहा है। चूंकि उत्तरप्रदेश में सपा के सत्ता में आने के बाद जिस तरह से प्रदेश सरकार आपराधिक व असामाजिक तत्वों को संरक्षण दे रही है और वहां अराजकता का माहौल बन रहा है, इसे झुठलाने के लिए मुलायम की मंशा कहीं यह तो नहीं कि सीबीआर्इ उनके विरूद्ध कडी कार्यवाही करे और वे मतदाताओं की सहानुभूति बटोर ले जाएं। यही वह मुनासिव वक्त होगा जब मुलायम केन्द्र सरकार से समर्थन वापिसी का ऐलान कर सकते हैं। लेकिन केन्द्र ऐसा अवसर देने वाली नहीं है।

राजनीतिक, राजनीतिकों पर नाजायज दबाव के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआर्इ) का इस्तेमाल करते हैं, यह अब कोर्इ दबी-छिपी बात नहीं रह गर्इ है। सप्रंग-2 से द्रुमुक प्रमुख करुणानिधि द्वारा समर्थन वापिसी के बाद, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो ने जिस तरह से एकाएक करुणानिधि के परिजनों के 19 ठिकानों पर छापामार कार्यवाही की उससे साफ जाहिर है कि सीबीआर्इ का इस्तेमाल होता है।

सीबीआर्इ के इस्तेमाल की बात कोर्इ नर्इ नहीं है। सत्ता पक्ष और विपक्ष के जितने भी राष्टीय अथवा क्षेत्रीय दल हैं, लगभग सभी परोक्ष-अपरोक्ष रुप से सत्ता में हिस्सेदारी कर चुके हैं और सत्ता से बाहर होने के बाद सत्ता पक्ष पर सीबीआर्इ का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते रहे हैं। मसलन अपरोक्ष रुप से वे अपने ही अनुभव प्रकट करते हैं। संसद के पिछले सत्र में एफडीआर्इ पर महाबहस के दौरान सपा और बसपा के मतदान में हिस्सा नहीं लेने पर सुषमा स्वराज ने संसद में बयान देते हुए कहा था कि यह स्थिति एफडीआर्इ बनाम सीबीआर्इ की लड़ार्इ बना देने के कारण उत्पन्न हुर्इ है। इसी घटनाक्रम के बाद सीबीआर्इ के पूर्व निदेशक उमाशंकर मिश्रा ने भी एक बयान देकर आग में घी डालने का काम करते हुए  कहा था कि 2003 से 2005 के बीच जब वे सीबीआर्इ प्रमुख थे, तब उत्तरप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती और उनसे जुड़ा ताज कारीडोर मामले की जांच का प्रकरण उनके पास था। इस सिलसिले में मायावती के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति की जांच चल रही थी। जांच में पाया कि मायावती के माता-पिता के बैंक खातों में इतनी ज्यादा रकम जमा थी, कि उनकी आय के स्त्रोत की पड़ताल जरुरी थी, लेकिन केंद्र के दबाव के सामने वे निष्पक्ष जांच नहीं कर पाए। मसलन जांच लटका दी गर्इ। यहां गौरतलब है कि मार्च 1998 से 2004 तक केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार थी और 22 मर्इ 2004 को प्रधानमंत्री मनमोहन की सरकार वजूद में आर्इ, जो अभी भी वर्तमान है। मसलन संप्रग और राजग दोनों ने ही अपने हितों के लिए सीबीआर्इ का दुरुपयोग करते हैं।

इसीलिए इसकी साख बरकरार रखने के लिए अन्ना हजारे लगातार मांग कर रहे हैं कि इस संगठन को पूरी तरह स्वतंत्र एवं स्वायत्त बनाया जाए। जिस तरह से सर्वोच्च न्यायालय, निर्वाचन आयोग और निंयत्रक एवं महालेखा निरीक्षक जैसी संस्थाएं हैं। लेकिन सरकार केंद्र में किसी भी दल की आ जाए, वह सीबीआर्इ को स्वायत्त बना देने का आदर्श प्रस्तुत करने वाली नहीं है। क्योंकि लगभग सात साल केंद्र में राजग सत्ता में रह चुकी है, उसने भी सीबीआर्इ की मुष्कें केंद्रीय सत्ता से जोड़कर रखीं। यही वजह रही कि सीबीआर्इ बोफोर्स तोप सौदे, लालू यादव के चारा घोटाले, मुलायम सिंह की अनुपातहीन संपत्ति और मायावती के ताज कारीडोर से जुड़े मामलों में कोर्इ अंतिम निर्णय नहीं ले पार्इ।

कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भी कह चुके हैं कि सीबीआर्इ राजनीतिक दबाव में रहती है। इन सब बयानों और करुणानिधि के यहां डाले गए छापों से साफ होता है कि सीबीआर्इ को सुपुर्द कर देने के बाद गंभीर से गंभीर मामला भी गंभीर नहीं रह जाता ? बलिक अपरोक्ष रुप से सीबीआर्इ सुरक्षा-कवच का ही काम करती है। इसीलिए बीते दो-तीन सालों में जितने भी बड़े घोटाले सामने आए हैं उनको उजागर करने में शीर्ष न्यायालय, कैग और आरटीआर्इ की भूमिका प्रमुख रही है, न कि किसी जांच एजेंसी की ?  2जी स्पेक्टम मामले में तो सीबीआर्इ को निष्पक्ष जांच के लिए कर्इ मर्तबा न्यायालय की फटकार भी खानी पड़ी। मुलायम सिंह के आय से अधिक संपत्ति के मामले में भी न्यायालय ने उल्लेखनीय पहल करते हुए, इन आषंकाओं की अपरोक्ष रुप से पुशिट की है कि सीबीआर्इ राजनीतिक दबाव में काम करती है। 2007 में शीर्ष न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर करते हुए आरोप लगाया गया था कि मुलायम व उनके परिजनों ने आय से अधिक संपत्ति हासिल की है। इस याचिका को मंजूर करते हुए अदालत ने सीबीआर्इ को जांच सौंप दी थी। जांच से बचने के लिए मुलायम सिंह ने यह कहते हुए कि उनके पास कोर्इ अनुपातहीन संपत्ति नहीं है, पुनर्विचार याचिका दाखिल कर दी। अब अदालत ने इसे खारिज करते हुए सीबीआर्इ को हिदायत दी है कि जांच रिपोर्ट सरकार को नहीं सौंपी जाए, सीधे अदालत में ही पेश की जाए। तय है मुलायम सिंह कटघरे में तो अदालत के हैं, लेकिन घोषित कुछ इस तरह से कर रहे हैं कि उन्हें कांग्रेस के इशारे पर सीबीआर्इ घेर रही है।  इसी तरह शीर्ष न्यायालय कोयला घोटाले की जांच को आगे बड़ा रही है। तय है कि अदालत कि निगाह में सीबीआर्इ की भूमिका निश्पक्ष नहीं रही है।

लेकिन यहां सवाल उठता है कि यदि मुलायम, मायावती और करुणानिधि आर्थिक घोटालों के चलते सीबीआर्इ की जद में हैं तो जांच क्यों न हो ? करुणानिधि के परिजनों को विदेशी वैभवशाली व मंहगी कारें रखने का शौक है, लेकिन वे जो निर्धारित आयात शुल्क है उसे नहंी चुकाते। इसी सिलसिले में डीआरआर्इ दो साल से इस मामले की जांच में लगा है, लेकिन राजनैतिक दबाव के चलते किसी नतीजे पर नही पहुंच पा रहा है। इसी शिथिलता को दूर करने के लिए सीबीआर्इ ने करूणानिधि के बेटे स्टालिन के यहां छापा डाला था। कानून का तकाजा है कि यदि कर चोरी हुर्इ है अथवा किसी राजनेता के यहां अनुपातहीन संपत्ति है तो इन लोगों के विरूद्ध कार्यवाही क्यों टाली जाये ? इस लिहाज से मुलायम सिंह के डर की वजह साफ है कि कहीं सीबीआर्इ अदालत के कड़े रूख के चलते निष्पक्ष जांच रिपोर्ट पेश करती है तो उन पर अनुपातहीन संपत्ति का आपराधिक मामला बन सकता है। ऐसे में यदि उनकी गिरफतारी होती है तो जनता में यह संदेश जाये कि यह कार्यवाही अदालत नहीं बलिक केन्द्र सरकार के दबाव में हुर्इ है।

 

प्रमोद भार्गव

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