
वैसे तो सभी को लाल बहादुर शास्त्री जी के बारे काफी कुछ पता है परन्तु कुछ जानकारियाँ ऐसी है जो सभी के संज्ञान में न हो | उन्ही जानकारियों का मै यहां विस्तार से वर्णन करना चाहूँगा | आशा है की सभी पाठक इनको पसंद करेंगे | पंडित जवाहर लाल नेहरू के मृत्यु के पश्चात ही जून १९६४ में प्रधान मंत्री का पद संभाला था इससे पूर्व वे रेल मंत्री व् कैबिनेट मंत्री भी तह चुके थे | वे कांग्रेस पार्टी के एक कर्मठ ईमानदार और अपना सब कुछ न्योछावर करने वाले कार्य कर्ता थे | वैसे तो दो अक्टूबर को महात्मा गाँधी जी का जन्म दिन गांधी जयंती के रूप में पूरे देश में मनाया जाता है देश में राष्ट्रीय छुट्टी होती है पर इसी दिन लाल बहादुर शास्त्री जी का भी जन्म दिन है ,लेकिन लोग गांधी जयंती के सामने शास्त्री जी की जयन्ती भूल जाते है | उन्होंने अपना प्रो फाइल बड़ा ही लो रखा था वे ईमानदार विनम्र और हमेशा धीरे से बोले वाले व्यक्ति थे | उन्होंने बिना किसी शोर शराबे के निर्माण में काफी योगदान दिया | इनका जन्म २ अक्टूबर १९०४ को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय शहर में एक कायस्थ परिवार में हुआ था | अक्सर कायस्थ कायस्थ परिवार में श्रीवास्तव और वर्मा सरनेम लगाने की परम्परा रही | इस परम्परा के कारण इनके माता पिता ने इनका नाम लाल बहादुर वर्मा रख दिया | लाल बहादुर वर्मा से लाल बहादुर शास्त्री तक इंक एक दिलचस्प कहानी है | इनके पिता का नाम शारदा प्रसाद व् माता का नाम रामदुलारी था | इनके पिता एक स्कूल अध्यापक थे पर बाद में उन्होंने इलाहाबद के राजस्व विभाग में क्लर्क की नौकरी मिल गयी | सन १९०६ में जब लाल बहादुर की उम्र केवल एक वर्ष छह माह की थी तभी इनके पिता का देहांत हो गया | तभी इनकी माता रामदुलारी इनको मुगलसराय ले आई जो इनका ननिहाल और इनकी माता का मायका था | शास्त्री जी की पढाई लिखाई इनके ननिहाल में हुई | इनके नाना मुंशी हजारी लाल मुगलसराय के एक सरकारी स्कूल में अंग्रेजी के अध्यापक थे | सन १९०८ में लाल बहादुर के नाना हजारी लाल का भी निधन हो गया | इसके बाद इनके परिवार की देखभाल हजारी लाल के भाई और उनके बेटे विदेश्वरी प्रसाद ने की | विदेश्वरी प्रसाद भी एक स्कूल में अध्यापक थे | लाल बहादुर की पढाई लिखाई चार साल की उम्र से शुरू हुई | उस समय कायस्थ परिवारों में अंग्रेजी से ज्यादा उर्दू भाषा की शिक्षा देने की परम्परा थी ऐसा इसलिए था क्योकि मुग़ल काल से भारत में राजकाज की भाषा उर्दू ही हुआ करती थी | जमींदारी के सरे कामकाज बह उर्दू में होते थे | इसलिए लाला बहादुर को एक बुद्दन मियां जो एक मौलवी भी थे उर्दू की शिक्षा देनी शरू की | छठी क्लास तक इनकी पढाई लिखाई मुगलसराय में हुई थी | इसके बाद विन्देशरी का ट्रांसफर वाराणसी हो गया | लाल बहादुर को अपनी माँ और भाइयो के साथ वाराणसी आना पड़ा।
वाराणसी में हरिशचन्द हाई स्कूल में उनको सातवीं क्लास में दाख़िला मिला | मौलाना जो उनको उर्दू पढ़ाते थे अक्सर उन्हें शास्त्री जी कह कर पुकारते थे यही से उनका नाम लाल बहादुर शास्त्री पड़ा | और उन्होंने अपना सरनेम के स्थान पर शास्त्री लिखने लगे | उस समय लाल बहादुर शास्त्री जी के परिवार को चल रहे आंदोलन से कोई लेना देना नहीं था ,परन्तु हरिशचन्द हाई स्कूल का वातावरण बड़ा ही देश भक्ति पूर्ण था | वहां के सभी अध्यापक विशेषकर विश्वकामेश्वर मिश्रा जी अपने छात्रों को देशभक्ति का पाठ पढाते थे इसका प्रभाव शास्त्री जी के जीवन पर भी पड़ा | इसके अतिरिक्त उनके जीवन में स्वामी विवेकानंद जी व महात्मा गाँधी जी का भी काफी प्रभाव पड़ा और वे पढाई छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े | जनवरी १९२१ में जब लाल बहादुर शास्त्री जी केवल दसवीं के ही छात्र थे उन्होंने वाराणसी में महात्मा गाँधी और मदन मोहन मालवीय जी के कार्यक्रमों में भाग लेना शुरू कर दिया था वे गाँधी जी इतने प्रभावित हुए कि दुसरे दिन ही स्कूल छोड़कर स्थानीय कांग्रेस के दफ्तर में जाकर पार्टी की सदस्यता ले ली और इस तरह लाल बहदुर शास्त्री जी स्वंत्रता आंदोलन में कूद पड़े | जल्द ही उन्हें अंग्रेजी हकूमत ने गिरफ्तार कर लिया पर बाद में कम उम्र के कारण उन्हें रिहा कर दिया गया | बाद में १० फरवरी १९२१ में काशी विद्यापीठ की स्थपना होने के पश्चात उन्होंने राजनैतिक दर्शनं में बी ए किया | शास्त्री जी का विवाह १९२८ में ललिता शास्त्री जी के साथ हुआ | ललिता जी मिर्जापुर की रहने वाली थी। शास्त्री जी दहेज लेने के बड़े खिलाफ थे | उन्होंने दहेज़ लेने से साफ़ इंकार कर दिया था , लेकिन ससुर जी के बहुत जोर देने पर कुछ मीटर ही खादी का कपड़ा ही लिया | शास्त्री जी के दो बेटियां व चार पुत्र हुए जिनका नाम कुसुम,सुमन,हरिकृष्ण,अनिल, सुनील व् अशोक शास्त्री है | उनके चार पुत्रो में से अभी दो पुत्र अनिल शास्त्री व् सुनील शास्त्री है और शेष दो पुत्र दिवंगत हो चुके है | पंडित जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के पश्चात ही उन्होंने प्रधान मंत्री का पद जून १९६४ में संभाला | उन्होंने अपना पूरा जीवन बड़ी ही सादगी से बिताया आडम्बर उनसे कोसो दूर था | उनके जीवन की कुछ झलकिया इस प्रकार से है और हमे इन झलकियों से अवशय ही शिक्षा लेनी चाहिए |
फटा कुर्ता पहनने पर उनका उत्तर :- रेल मंत्री रहते हुए वे जनता से मिलने काशी गए | जब वे काशी से वापिस लौट रहे थे उस समय उनके एक सहयोगी ने उन्हें एक साइड में ले जाकर टोका और कहा,आपका कुर्ता फटा हुआ है तो उन्होंने तुरंत जबाब दिया , “मै एक गरीब का बेटा हूँ और ऐसा ही रहूंगा ताकि मै गरीब का दर्द समझ सकू | मेरे पास तो बहुत से कुर्ते तो है पर मेरे बहुत से देशवासियो पर तो एक भी कुर्ता नहीं है | उनका जबाब सुनकर उनका वह साथी कुछ भी न बोल सका और अपने आप को शर्मिंदा महसूस करने लगा ||
जय जवान जय किसान का नारा :- शास्त्री जी जब जून १९६४ में प्रधानमंत्री बने तब देश खाने के खाद्यान्न विदेशो से खासकर गेहू आयात होता था | उस समय पी एल ४८० के तहत नार्थ अमेरिका पर भारत अनाज के लिए निर्भर था | सन १९६५ में लड़ाई के दौरान देश में भयंकर सूखा पड़ा तब उन्होंने देश का हालत देखते हुए एक दिन का उपवास रखने का सभी देश वासियो से आग्रह किया जिसको सभी देश वसीयोने सहर्ष स्वीकार कर लिया और इस समय उन्होंने देश का एक नारा दिया था, “जय जवान जय किसान ” | वे स्वयं भी उपवास रखते थे और उनका पूरा परिवार भी उपवास रखता था। इस दिन उनके घर में खाना नहीं बनता था |
ईमानदार व सरकारी सम्पति का दुरूपयोग न करना :- एक दिन की बात है कि शास्त्री जी के बेटे सुनील शास्त्री किसी काम से सरकारी गाडी को अपने निजी काम से बाहर ले गए और चुपचाप गाड़ी खड़ी कर दी ताकि उनके पिता लाल बहादुर शास्त्री जी को न पता चले। पर उनको यह बात पता चल गयी क्योकि गाडी पर कुछ धुल जमी थी उन्होंने अपने ड्राइवर को बुलाया और पूछा, कि वह गाडी किस काम से लेकर बाहर गया था | ड्राइवर ने सीधे स्वभाव सही बात बता दी और कहा कि सुनील जी अपने निजी काम से गाडी ले गए थे शास्त्री जी ने तुरंत गाडी की लॉग बुक मंगवाई और उस पर लिखा कि गाडी जितने किलोमीटर निजी काम के लिए सुनील ने उपयोग किया उसका हिसाब लगाकर उतने रूपये सरकारी खजाने में तुरंत जमा कराये जाये और सुनील को बुलाकर डाटा और कहा कि वह भविष्य में सरकारी गाड़ी को अपने निजी उपयोग में न लाये |
पुराने कपडो का किया गया उपयोग :- शास्त्री जी की कपड़ो की अलमारी खोली गयी और उनके पुराने कपड़े फैके जाने लगे ,जब उन्हें यह पता लगा कि उनके के कुर्ते फैके जा रहे तो उन्होंने उन कपड़ो को फिर से अलमारी में वपिस रखवा दिया और बोले , “इन खादी के कुर्तो में मेरे देशवासियो का प्यार व् परिश्रम छिपा है | मै इन्हे फैकने नहीं दूँगा | अगर फट भी गए है तो कोई बात नहीं है मै इन्हे सर्दियों के दिनों में कोट के नीचे पहन लूँगा | अगर ये पहनने लायक नहीं रहेंगे तो उनको फाड़ कर मै अपने लिए रुमाल बना लूंगा | इस बात को सुनकर परिवार के लोग व् नौकर चाकर हक्के बक्के रह गए |
सरकारी नियमो का उल्लघन न करना :- बात उन दिनों की जब शास्त्री जी असहयोग आंदोलन के दौरान जेल में बंद थे | उनकी पत्नी ललिता प्रेमवश दो आम छिपा कर अपने साथ जेल में मुलाकात का दौरान ले गयी और शास्त्री जी को चुपचाप देने लगी पर शास्त्री जी इस बात पर खुश नहीं हुए और अपनी पत्नी को डाटा और बोले,”कैदियों को बाहर की चीजे खाना कानून के खिलाफ है मुझे कानून का पालन करना चाहिए भले ही अंग्रेजो का शासन है और हम उनके खिलाप आजादी के लिए लड़ रहे है | उनमे नैतिकता कूट कूट कर भरी हुई थी इसी दौरान उनकी एक बेटी काफी बीमार हो गयी जेल अधिकारियों ने उन्हें १५ दिनों के लिए बेटी से मिलने के लिए पैरोल पर छोड़ दिया परन्तु कुछ दिनों बाद ही उनकी बेटी चल बसी | बेटी का संस्कार के पश्चात तीन दिन के बाद फिर जेल जा पहुंचे और अधिकारियो से कहा कि जिस मकसद से तुमने मुझे पैरोल पर छोड़ा वह अब मकसद खत्म हो गया है अत : मै जेल में ही रहूँगा |