विश्ववार्ता

अमेरिका में बाबरी मस्जिद को लेकर उठा तूफान

-डॉ0 कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

भारत में एक बाबरी ढांचे को लेकर तूफान शांत नहीं हो रहा कि उधर अमेरिका में एक बाबरी मस्जिद किस्म की मस्जिद निर्माण को लेकर विवाद षुरू हो गया है। अमेरिका में जिस मस्जिद को बनाने की बात हो रही है उसका नाम तो यह नहीं है परन्तु पृश्ठ भूमि लगभग बाबरी मस्जिद जैसी ही है। 1528 में उत्तरी भारत के काफी हिस्से को विजित करने के पश्चात बाबर के सेना पति मीरवाकी ने आयोध्या में एक मस्जिद निर्माण का निर्णय लिया। यह मस्जिद अयोध्या में कहीं भी बनाई जा सकती थी परन्तु मीरवाकी ने इसे उस समय के राम मन्दिर को तोड़कर उसी स्थान पर बनाने का निर्णय किया था। उद्देश्य बिल्कुल स्पष्ट था कि मूलतः यह मस्जिद नहीं थी परन्तु बाबर द्वारा भारत को जितने के उपरान्त निर्माण किया जाने वाला इस्लामी विजय स्तम्भ था। देश भर में इस विजय का संदेश देने के लिए यह जरूरी था कि अयोध्या में राम मन्दिर को तोड़कर ही इस इस्लामी मस्जिद का निर्माण किया जाये। उस समय भारतीय समाज इतना सशक्त नहीं था कि बाबर की विजय सेना को पेशावर में ही परास्त कर सकता या फिर अयोध्या में राम मन्दिर तोड़ने से उसे रोक सकता। लेकिन जाहिर है समाज ने उस वक्त भी समय आने पर इस अपमान और अन्याय को समाप्त करने का संकल्प लिया होगा। भारतीय समाज का यह संकल्प ही है कि पिछले 500 सालों से राम मन्दिर के निर्माण के प्रयास चल रहे हैं।

अब लगता है इससे मिलती जुलती स्थिति का सामना अमेरिका को करना पड़ रहा है। ओसामा बिन लादेन ने दुनियॉं भर में गैर इस्लाम वालो के खिलाफ जिहाद छेड़ रखा है। इस इस्लामी जिहाद का निशना अमेरिका भी बना हुआ है। ओसामा बिन लादेन किसी देश का बादशाह नहीं है। उसने अफगानिनस्थान का बादशाह बनने की कोशिश की थी लेकिन वह सफल नहीं हो पाया। इसलिए वह बाबर की तरह अपनी सेना लेकर किसी गैर इस्लामी देश पर हमला तो नहीं कर सकता परन्तु उसने वक्त और हालात के अनुसार युद्व का दूसरा तरीका इस्तेमाल किया है। वह आतंकवादी गुरिल्ला युद्व लड़ रहा है। इसी हथियार से उसने अमेरिका पर 9/11 को आक्रमण किया। जाहिर है आतंकवादी आक्रमण पूरा हमला तो नहीं हो सकता। वह प्रतीक रूप् में ही होता है। इसलिए लादेन ने अमेरिका को पराजित करने के लिए अपना निशाना भी प्रतीक रूप् में ही चुना। न्यूयार्क में वर्ल्ड ट्रेड सैंटर अमेरिका की शान और उसकी पहचान का प्रतीक बन गया था। लादेन की आतंकवादी सेना ने इस प्रतीक पर आक्रमण किया और समस्त विश्व की ऑखों के सामने उसे मिट्टी में मिला दिया। दुनियां भर के लोगों ने अमेरिका की इस पराजेय को धू धू कर जलते हुए वर्ल्ड ट्रेड सैंटर के रूप में अपने घरों में बैठकर टेलीविजन पर देखा। लादेन की इस्लामी आतंकी सेना की यह अमेरिका पर प्रतीकात्मक विजय थी।

इस विजय के उपरान्त अब मुसलमान गिरे हुए वर्ल्ड ट््रेड सैंटर पर एक मस्जिद का निर्माण करना चाहते हैं। जहॉ पहले वर्ल्ड ट्रेड सैंटर था उसका अब अमेरिका के लोग समतल धरातल के नाम से जानते है। और वह स्थान अमेरिका के लोगों के लिए एक तीर्थ स्थान बनता जा रहा है। 9/11 के पराजय के बाद अमेरिका में राष्ट्रीय पहचान को लेकर एक बहस छिड़ गई है और प्रायः यह माना जाने लगा है कि यह समतल धरातल अमेरका की राष्ट्रीय पहचान को सवल बनाने का प्रतीक है। लेकिन मुसलमान वहीं मस्जिद बनाने की जिद्द पर अड़े हुए है। यह घटना क्रम भारत के 1528 के घटनाक्रम से लगभग मिलता जुलता है। बाबर की विजय सेना भी अयोध्या में राम मन्दिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद के नाम पर अपनी विजय का स्तम्भ निर्माण कर रही थी और अमेरिका में भी मस्जिद के बहाने उसी विजय स्तम्भ के निर्माण का षडयंत्र रचा जा रहा है। अल्लाह का लाख शुक्र है कि निर्माण की मांग करने वालों ने इसे लादेन मस्जिद कहना नहीं शुरु कर दिया। इसका एक कारण शायद यह भी हो सकता है कि 1528 से 2010 तक आते आते मस्जिद बनाने वाले इतना समझ गये हैं कि लक्ष्य तक पहुंचने के लिए यदि दंभ की भाषा का न प्रयोग किया जाये तो भी रणनीति में कोई अंतर नहीं पड़ता। इसलिए वे इसे लादेन मस्जिद नहीं कहते, जैसा की उन्होंने 1528 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद कहना षुरू कर दिया था, बल्कि वे इसे शान्ति के लिए स्थापित किया जाने वाला इवादत खाना कह रहे हैं। यदि मकसद सचमुच इवादत खाना बनाने का ही होता तो न्यूयार्क में बहुत सी जमीन खाली पड़ी है, वह कहीं भी बनाया जा सकता था। उसे समतल धरातल पर ही बनाने की जिद्द न की जाती। परन्तु ऐसा तो अयोध्या में भी हो सकता था। बाबर की सेना पूरे आयोध्या में कहीं भी मस्जिद बना सकती थी उसे राम मन्दिर तोड़ने की जरूरत नहीं थी। शायद मस्जिद बनाने का मकसद न अयोध्या मे था और न ही अब न्यूयार्क में है। मकसद तो गिरे हुए वर्ल्ड ट्रेड सैंटर के स्थान पर मस्जिद के बहाने इस्लामी फतेह का परचम लहराने का है। इसकी इजाजत अमेरिका के लोग दे नहीं रहे। जिस न्यूयार्क में प्रत्यक्ष विरोध प्रदशन के लिए 10 लोग इक्ट्ठा करना भी मुश्किल हो जाता है वहॉं मस्जिद का निर्माण रोकने के लिए हजारों लोग मुट्ठियां तान कर प्रदशन कर रहे थे। अमेरिका के राश्ट्र्पति बराक हुसेन ओबामा ने जब कहा कि इस स्थान पर मस्जिद बनाने में किसी को एतराज नहीं होना चाहिए तो बाद में हुए सर्वेक्षण में अधिकांश अमेरिकियों ने कहा कि ओबामा मुसलमान हैं। अब वाशिंगटन में राष्ट्रपति भवन से बार बार स्पष्टीकरण दिये जा रहे है। कि ओबामा इसाई हैं। इसमें कोई शक नहीं कि समतल धरातल पर मस्जिद निर्माण के प्रयास अमेरिका की राष्ट्रीय़ पहचान को मुंह चढ़ाने के लिए ही किये जा रहे है। भारत तो अमेरिका से कहीं पुराना देश है उसकी राष्ट्रीय पहचान को पारिभाशित करने की जरूरत भी नहीं है, जैसा की अमेरिक पहचान को परिभाशित करने के प्रयास 9/11 के बाद से हो रहे है। ऐसी स्थिति में बाबर के नाम पर अयोध्या में राम मन्दिर को गिरा कर खड़ा किया गया ढांचा भारतीय अस्मिता का अपमान करता था–यह अब बदले हालात में अमेरिका को समझ आ ही गया होगा।