गीत-मिट जाऊ वतन पर ये…..

शादाब जफर ‘‘शादाब’’

 

मिट जाऊ वतन पर ये मेरे दिल में लगन है।

नजरो में मेरी कब से तिरंगे का कफन हैं

हर ग़ाम पडौसी को मेरे यू भी जलन है

सोने की है धरती यहा चांदी का गगन है

पंजाब की रूत है कही कश्मीर की रंगत

गंगा का मिलन है कही जमना का मिलन हैं

जन्नत का लक्ब जिस को जमाने ने दिया हैं

वो मेरा वतन मेरा वतन मेरा वतन हैं

मशहूर बनारस की है सुब्ह शाम-ए- अवध यू

ग़ालिब की गजल है कही मीरा का भजन हैं

गांधी तुझे भूले है ना चरखा तेरा भूले

खादी को बनाने का यहा अब भी चलन हैं

‘‘शादाब ’’ जिसने तुझ को बनाया मेरे वतन

वो आज तेरी नींव में गुमनाम दफन है

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