गीत ; चट्टू हो गई जीभ – प्रभुदयाल श्रीवास्तव

प्रभुदयाल श्रीवास्तव

चट्टू हो गई जीभ

जलेबी कौन खिलाये

 

चस्का लगा मलाई

बर्फी लड्डू रसगुल्ला

एक इशारे पर पहुँचा

देता कोई दुमछल्ला

री मैया संपूर्ण उमरिया

यूं ही कट जाये

चट्टू हो गई जीभ

जलेबी कौन खिलाये|

 

आसमान से उड़े परिंदे

धरती पर आते

तृष्णाओं के मकड़ जाल में

स्वयं ही फँस जाते

जितना भी सुलझाना चाहे

और उलझ जाये

चट्टू हो गई जीभ

जलेबी कौन खिलाये |

 

बात बात में ही मुंह में

पानी का आ जाना

अब तो बस अच्छा लगता

खाना खाना खाना

यही योजना बनती हर दिन

आज किसे खाये

चट्टू हो गई जीभ

जलेबी कौन खिलाये|

 

माउस हाथ में लिये

आज बैठे हैं दादाजी

पलभर में ही क्लिक कर देते

जहां हुई मर्जी

भरे बुढ़ापे आग लगी को

कौन बुझाये

चट्टू हो गई जीभ

जलेबी कौन खिलाये |

 

 

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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