प्रभुदयाल श्रीवास्तव
जलेबी कौन खिलाये
चस्का लगा मलाई
बर्फी लड्डू रसगुल्ला
एक इशारे पर पहुँचा
देता कोई दुमछल्ला
री मैया संपूर्ण उमरिया
यूं ही कट जाये
चट्टू हो गई जीभ
जलेबी कौन खिलाये|
आसमान से उड़े परिंदे
धरती पर आते
तृष्णाओं के मकड़ जाल में
स्वयं ही फँस जाते
जितना भी सुलझाना चाहे
और उलझ जाये
चट्टू हो गई जीभ
जलेबी कौन खिलाये |
बात बात में ही मुंह में
पानी का आ जाना
अब तो बस अच्छा लगता
खाना खाना खाना
यही योजना बनती हर दिन
आज किसे खाये
चट्टू हो गई जीभ
जलेबी कौन खिलाये|
माउस हाथ में लिये
आज बैठे हैं दादाजी
पलभर में ही क्लिक कर देते
जहां हुई मर्जी
भरे बुढ़ापे आग लगी को
कौन बुझाये
चट्टू हो गई जीभ
जलेबी कौन खिलाये |