राजनीति

सोनिया कांग्रेस खुल कर उतरी आतंकवादियों के समर्थन में

Sonia-Gandhi-and-Manmohan-Singh डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

                     सोनिया कांग्रेस अन्त में इस्लामी आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिदीन की ओर से सफ़ाई देने के लिये स्वयं मैदान में आ ही गई है । देश में हो रही अनेक आतंकवादी घटनाओं में इंडियन मुजाहिदीन का नाम सामने आ रहा है । पिछले दिनों बिहार के बौद्ध गया में हुये बम विस्फोटों में भी इसी संगठन का नाम आ रहा था । ज़ाहिर है कि इस संगठन पर चारों ओर से दबाव बढ़ रहा है । ज़रुरी था कि इस संगठन पर से इस दबाव को हटा कर , लोगों का ध्यान दूसरी ओर मोड़ा जाये । दुनिया भर में आतंकवादी संगठन इस रणनीति का इस्तेमाल करते हैं । इसलिये भारत में भी यह हो रहा है , इसमें कोई आश्चर्य नहीं है । अन्ततः सोनिया कांग्रेस इस काम के लिये आगे आई है , इसमें कुछ लोगों को आश्चर्य हो सकता है । लेकिन जो लोग लम्बे अरसे से इस पार्टी के चाल चलन पर गहरी नज़र रखे हुये हैं , उन्हें सोनिया कांग्रेस की इस हरकत पर आश्चर्य नहीं है । 
                        सोनिया कांग्रेस की रणनीति के दो हिस्से हैं । पहले हिस्से में उसे हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा को स्थापित करना है । उसे पता है कि हिन्दोस्तान में उसकी हिन्दु आतंकवाद की कहानी का कोई खरीददार नहीं मिलेगा । कुछ अति महत्वाकांक्षी दरबारियों को छोड़कर उसकी अपनी पार्टी में भी नहीं । लेकिन उसे यह कहानी हिन्दोस्तान में बेचनी भी नहीं है । इसके ग्राहक विदेशों में इस्लामी और ईसाई देश हैं । वेटिकन और पाकिस्तान को इस पटकथा की सख़्त ज़रुरत है । ये दोनों स्वतंत्र रुप से भी हिन्दू आतंकवाद की कहानी गढ़ ही रहे हैं । इसमें अमेरिका भी शामिल है । लेकिन इन देशों को हिन्दु आतंकवाद की कहानी को विश्वसनीय बनाने के लिये भारत के किसी संगठन की सहायता की सख़्त ज़रुरत है । वह सहायता सोनिया कांग्रेस कर रही है । उसने इस काम के लिये बाकायदा अपने एक महासचिव दिग्विजय सिंह को इस काम में लगा रखा है । यह ठीक है कि यह काम करने के कारण दिग्गी राजा की स्थिति भारत में हास्यस्पद हो गई है , लेकिन विदेशों में उनकी क़ीमत आसमान छूने लगी है और दरबार में भाव तो बढ़ ही रहा है । 
                       इस रणनीति का दूसरा हिस्सा भारत के भीतर ही संकट काल में इस्लामी आतंकवादी संगठनों को नैतिक समर्थन प्रदान करना है , ताकि जाँच के दबाव में कहीं वे निराश होकर अन्दर से टूट न जायें । इंडियन मुजाहिदीन इसी संकट काल में फँस गया है । इसलिये उसका नैतिक बल बढ़ाने के लिये पार्टी ने अपने दूसरे महासचिव शकील अहमद को मैदान में उतारा है । शकील अहमद इस इस्लामी आतंकवादी संगठन या इसी प्रकार के अन्य इस्लामी आतंकवादी संगठनों के राष्ट्रघाती कृत्यों से ध्यान हटाने के लिये , इन संगठनों की स्थापना के सांस्कृतिक - सामाजिक कारणों की व्याख्या में जुट गये हैं । सोनिया कांग्रेस जानती थी कि इस प्रकार जब वह सीधे सीधे इस्लामी आतंकवादी संगठनों के समर्थन में उतरेगी तो भारत में उसकी तीखी प्रतिक्रिया होगी । इसलिये उसने शकील अहमद को मैदान में उतारने से पहले ही ढाल तैयार कर ली थी । शकील अहमद अब उसी ढाल का प्रयोग कर रहे हैं । अहमद का कहना है कि राष्ट्रीय जाँच अभिकरण ने अपने आरोप पत्र में लिखा है कि इंडियन मुजाहिदीन की स्थापना की ज़रुरत गुजरात दंगों के बाद पड़ी । लगता है अहमद अपने अतिरिक्त बाक़ी सभी को अहमक ही समझते हैं । एन.आई.ए की इन्हीं हरकतों से तो पता चलता है कि सोनिया कांग्रेस देश की जाँच एजेंसियों का दुरुपयोग किस प्रकार आतंकवादी संगठनों की सहायता करने के लिये कर रही है । एन.आई.ए का काम इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादी कारनामों की जाँच करना है न कि उसकी स्थापना के सामाजिक-आर्थिक कारणों पर शोध प्रबन्ध तैयार करना । लेकिन सोनिया सरकार की इस्लामी आतंकवाद के प्रति सामान्य नीति को ध्यान में रखते हुये एन.आई.ए इंडियन मुजाहिदीन के कारनामों की जाँच कम कर रहा है और उसकी स्थापना के औचित्य को सिद्ध करने में ज़्यादा रुचि ले रहा है । अब सोनिया कांग्रेस ने अपने सेनापति शकील अहमद को इसी 'इस्लामी आतंकवाद के औचित्य सिद्धान्त' को प्रस्थापित करने के लिये मैदान में उतारा है । लेकिन प्रश्न है कि सोनिया कांग्रेस को इस्लामी संगठनों के समर्थन में इस प्रकार खुल कर आने की ज़रुरत क्यों पड़ी ? इसे एक दृष्टान्त की सहायता से समझा जा सकता है । 
               जेब कतरों के समूह का काम करने का एक ख़ास तरीक़ा होता है । भीड़ भाड वाले स्थान पर एक जेब क़तरा अपने काम में लग जाता है और बाक़ी वहीं भीड़ में छिपे रहते हैं । यदि उनका साथी जेब काटने के बाद सही सलामत रफ़ू चक्कर हो जाता है तो उसके साथियों को सामने आने की ज़रुरत नहीं पड़ती । बल्कि वे भी अन्य लोगों की तरह जेब कतरों के बढ़ रहे दुस्साहस और चरमराती क़ानून व्यवस्था की निन्दा करने में आगे हो लेते हैं । लेकिन यदि दुर्भाग्य से जेब क़तरा पकड़ा जाये तब उसके साथियों को आगे आना ही पड़ता है । फिर वे मौक़ा और स्थान देख कर व्यवहार करते हैं । यदि ख़तरा बहुत ज़्यादा हो , तब तो सीधे सीधे चाक़ू निकाल लेते हैं । नहीं तो पकडे गये जेब क़तरे के एक आध धौल जमा कर उसे पुलिस स्टेशन ले जाने के बहाने वहाँ से निकाल ले जाते हैं । यदि मौक़ा इजाज़त दे तो वे जनता का ध्यान बँटाने के लिये यह व्याख्यान भी देना शुरु कर देते हैं कि जन्म से कोई जेब क़तरा नहीं होता । समाज का व्यवहार और शोषण ही किसी को जेब क़तरा बनाता है । 
                             लगभग यही रणनीति सोनिया कांग्रेस ने इस्लामी आतंकवादी संगठनों के बारे में अपना रखी है । ज्यों ज्यों इन संगठनों की हैवानियत भारत में बढ़ रही है , त्यों इन के खिलाफ जनाक्रोश भी बढ़ रहा है । इसी जनाक्रोश के चलते सरकार को विवशता में , बड़ी देर से संभाल कर रखे हुये कसाब और अफ़ज़ल गुरु को फाँसी देनी पड़ी । लेकिन अब पार्टी का काम पर्दे के पीछे रह कर नहीं चल सकता था । इसलिये शकील अहमद को बुर्क़ा उतार कर मैदान में आना पड़ा । इसीलिये वे आतंकवाद के सामाजिक पक्ष पर लैक्चर दे रहे हैं । सोनिया कांग्रेस के ये दोनों सेनापति दिग्विजय सिंह और शकील अहमद एक ही रणनीति के दो सिरे हैं । इंडियन मुजाहिदीन को ख़तरे में देख कर दोनों एक स्वर से बोल रहे हैं । भारत में आतंकवाद का कारण हिन्दू व्यवहार और स्वभाव है । 
                      लेकिन इस पूरी बहस में एक प्रश्न अभी भी अनुत्तरित है । इस रणनीति से सोनिया कांग्रेस आख़िर क्या हासिल करना चाहती है ? पहला लक्ष्य तो साफ़ और स्पष्ट है । यह २०१४ के चुनावी महाभारत में मुस्लिम वोटरों को थोक में हाँकने की लड़ाई है । लेकिन पूछा जा सकता है कि क्या इससे नाराज़ होकर हिन्दू छिटक नहीं जायेगा ? यूरोप के लोग इससे अच्छी तरह वाक़िफ़ हैं कि हिन्दु राजनैतिक तौर पर बिखरा हुआ है । तभी तो मुट्ठी भर गोरे इस देश पर दो सौ साल राज कर गये । सोनिया गान्धी से अच्छी तरह इस रहस्य को और कौन समझ सकता है ? इसलिये लडाई मुसलमानों को रिझाने की है । दूसरा लक्ष्य इस देश की पहचान को ही बदल देने का है । लेकिन वह तभी पूरा हो सकता है यदि सोनिया कांग्रेस पहले लक्ष्य को पूरा कर लेती है । इसीलिये पार्टी को अपने एक सेनापति शकील अहमद को मैदान में उतारना पड़ा ।