सोनिया को नहीं तो क्या जनता बंगारू व बाल ठाकरे को माने ‘महात्यागी’

13
150

तनवीर जाफ़री

18 मई 2004 का वह दिन भारतीय इतिहास का एक ऐसा ऐतिहासिक दिन था जबकि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को कांग्रेस संसदीय दल ने अपना नेता तो चुन लिया परंतु सोनिया गांधी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के सबसे बड़े घटक दल कांग्रेस की नेता चुने जाने के बावजूद राष्ट्रपति भवन में जाकर स्वयं प्रधानमंत्री पद का दावा पेश करने के बजाए राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम को डा० मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाए जाने का सुझाव देकर चली आईं। उनके राष्ट्रपति भवन से वापसी के पश्चात संसद के केंद्रीय कक्ष में सोनिया गांधी के ऐतिहासिक भावुक भाषण तथा तमाम कांग्रेस नेताओं द्वारा उनसे प्रधानमंत्री पद स्वीकार किए जाने हेतु किया जाने वाला भावनात्मक आग्रह, यह नज़ारा भी आज तक संसद के केंद्रीय कक्ष ने कभी नहीं देखा था।

निश्चित रूप से प्रधानमंत्री पद को इतनी आसानी से ठुकराए जाने के बाद सोनिया गांधी को देश में त्याग की महामूर्ति के रूप में देखा जाने लगा था। ज़ाहिर है इससे सोनिया गांधी की लोकप्रियता में इज़ाफा होना स्वाभाविक था। परंतु अफवाहें फैलाने तथा दुष्प्रचार करने में महारत रखने वाले विपक्ष ने उसी समय से यह प्रचारित करना शुरु कर दिया था कि सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री का पद स्वयं नहीं ठुकराया बल्कि राष्ट्रपति डा० कलाम ने ही सोनिया गांधी को शपथ दिलाने से इंकार कर दिया था। विपक्ष द्वारा इसका कारण यह बताया जा रहा था कि एक तो सोनिया गांधी विदेशी मूल की महिला थीं तथा दूसरा यह कि उनके पति राजीव गांधी पर बो$फोर्स तोप दलाली सौदे में शामिल होने जैसा संगीन आरोप था।

परंतु पिछले दिनों विपक्ष के ऐसे सभी दुष्प्रचार की उस समय पूरी तरह हवा निकल गई जबकि डा० कलाम की निकट भविष्य में प्रकाशित होने वाली उनकी नई पुस्तक टर्निंग प्वांईंट: ए जर्नी थ्रू चैलेंजेज़ के कुछ अंश पुस्तक प्रकाशन से पूर्व मीडिया में आ गए। यह पुस्तक कलाम साहब की एक और पुस्तक विंग्स ऑफ फायर का दूसरा संस्करण है। अपनी इस नई पुस्तक में डा० कलाम ने अपने राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान उनके द्वारा लिए गए कुछ फैसलों तथा कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं व चुनौतियों का जि़क्र किया है। कलाम ने इस पुस्तक के माध्यम से यह साफ़ किया है कि उन्होंने सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने में कोई रुकावट नहीं डाली थी।

बजाए इसके सोनिया गांधी ने स्वयं ही प्रधानमंत्री पद को ठुकरा दिया था। उनके अनुसार ‘उस समय हालांकि कई प्रमुख राजनेता उनसे आकर मिले थे व उनसे अपील की थी कि सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के मुद्दे पर वह किसी दबाव में न आएं। यह ऐसी अपील थी जो संवैधानिक रूप से स्वीकार नहीं की जा सकती थी। यदि सोनिया गांधी अपनी नियुक्ति को लेकर कोई दावा प्रस्तुत करतीं तो मेरे पास उनकी नियुक्ति के अतिरिक्त कोई दूसरा विकल्प नहीं होता। परंतु सोनिया गांधी ने स्वयं ही मनमोहन सिंह का नाम आगे कर मुझे तथा राष्ट्रपति कार्यालय को चौंका दिया था। वास्तविकता तो यह है कि राष्ट्रपति कार्यालय से सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाए जाने हेतु उनके नाम की चिट्ठी भी तैयार हो चुकी थी। परंतु उनके इंकार करने के बाद दोबारा राष्ट्रपति कार्यालय को मनमोहन सिंह के नाम की चिट्ठी तैयार करनी पड़ी।’

डा० कलाम के इस खुलासे के बाद अब वह विपक्ष बगलें झांकने लगा है जोकि कल तक यह दुष्प्रचारित करता आ रहा था कि सोनिया ने प्रधानमंत्री पद का त्याग नहीं किया बल्कि डा० अब्दुल कलाम ने स्वयं ही उन्हें शपथ नहीं दिलवाई व प्रधानमंत्री बनने से रोक दिया। मज़े की बात तो यह है कि डा० कलाम के इस रहस्योद्घाटन के बाद अब वही डा० कलाम जो कल तक भाजपा व उसके सहयोगी दलों की आंखों के तारे दिखाई देते थे अब इन्हीं दलों की आलोचना के शिकार हो रहे हैं।

दुष्प्रचार करने व अफवाहें फैलाने के इन महारथियों को अब कुछ और समझ में नहीं आ रहा है तो यह डा० कलाम से यही पूछने लगे हैं कि आ$िखर उन्होंने इस रहस्योदघाट्न के लिए यही समय क्यों चुना? इनका कोई नेता यह बोल रहा है कि डा० कलाम यह पहले भी कह चुके हैं और यह कोई नई बात नहीं है। बाल ठाकरे जैसा व्यक्ति जोकि शक्ल-सूरत,किरदार,गुफ्तगू आदि प्रत्येक रूप में स्वयं पाखंडी दिखाई देता है वह अब डा० कलाम जैसे समर्पित एवं नि:स्वार्थ रूप से राष्ट्र की सेवा करने वाले भारत रत्न को पाखंडी कहकर संबोधित कर रहा है। कौन नहीं जानता कि बाल ठाकरे ने अपने पुत्र मोह में आकर अपनी पार्टी के दो टुकड़े हो जाना तो गवारा कर लिया परंतु अपने भतीजे को अपने बेटे पर तरजीह देने से साफ इंकार कर दिया। आज वह सत्तालोभी व्यक्ति कलाम को पाखंडी तथा उथला बता रहा है। और तो और ठाकरे की नज़रों में कलाम के इस देश में सम्मान किए जाने का एकमात्र कारण ही यही था कि उन्होंने सोनिया को प्रधानमंत्री बनने देने से रोक दिया था।

सोनिया गांधी को 2004 में प्रधानमंत्री न बनने देने के लिए इन विपक्षी नेताओं खासतौर पर भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं द्वारा क्या कुछ नहीं किया गया। पहले तो चुनाव के दौरान सोनिया को विदेशी मूल की महिला के रूप में प्रचारित कर आम भारतीयों के दिलों में स्वेदशी बनाम विदेशी का मुद्दा बसाने की नाकाम कोशिश की गई। परंतु भारतीय जनता व मतदाता सोनिया गांधी को नेहरू परिवार की बहू के रूप में देखते रहे। परिणामस्वरूप विपक्ष के इस दुष्प्रचार से सोनिया गांधी के प्रति लोगों में न$फरत तो नहीं सहानुभूति ज़रूर पैदा हुई।

इसके पश्चात इन्होंने अपने शासनकाल के कारनामों को ‘फील गुड’ के रूप में देश के लोगों पर ज़बरदस्ती थोपना चाहा। परंतु इनकी कारगुज़ारियों से दु:खी जनता ने ज़बरदस्ती ‘फील गुड’ का एहसास करने के बजाए इन्हें स्वयं सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया। और आख़िरकार सत्ता की बागडोर संप्रग के हाथों सौंप दी। लोकतंत्र के आदर व सम्मान की दुहाई देने वाले इन तथाकथित देशभक्तों ने जब यह देखा कि भारतीय लोकतंत्र ने अपना निर्णय इनके विरुद्ध तथा कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के पक्ष में दे दिया है तब इन्होंने निम्रस्तर के हथकंडे अपनाने शुरु कर दिए। कोई भाजपाई नेत्री यह कहती नज़र आई कि यदि सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली तो मैं अपने बाल मुंडवा डालूंगी। तो किसी ने यह कहा कि मैं भुने चने खाना शुरु कर दूंगी। और कोई यह बोली कि ऐसा होने पर मैं उल्टी चारपाई पर बैठना शुरु कर दूंगी। गोया खिसियानी बिल्लियां खंभा नोचती नज़र आईं।

ज़ाहिर है विरोध के इस छिछोरे तरीके ने सोनिया को यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि लोकतंत्र की दुहाई देने वाला यह विपक्ष जब जनादेश का सम्मान ही नहीं करना चाह रहा है तथा इस प्रकार घटिया,असंसदीय व असंवैधानिक स्तर पर उनका विरोध करने पर उतर आया है ऐसे में वह किस प्रकार प्रधानमंत्री पद की जि़म्मेदारियां निभा सकेंगी। ज़ाहिर है सत्ता से बेदखल होने के बाद खिसियाया हुआ यह विपक्ष सोनिया गांधी के विरोध के लिए किसी भी स्तर तक जा सकता था और सोनिया के प्रधानमंत्री बनने के बाद संभवत: संसद में यह लोग कुछ ऐसी हरकतें भी कर सकते थे जो देश के संसदीय इतिहास में अब तक नहीं घटीं। ऐसे में सोनिया के पास प्रधानमंत्री पद का त्याग किए जाने से बेहतर और दूसरा रास्ता नहीं था। परंतु वाह रे विपक्ष इसे न तो सोनिया गांधी का प्रधानमंत्री बनना स्वीकार हुआ न ही वह यह हज़म कर रहा है कि प्रधानमंत्री का पद छोडऩे के बाद उन्हें कोई त्यागी या महात्यागी कहे। और कुछ नहीं तो अब इन्हें वही डा० कलाम भी बुरे लगने लगे हैं जिन्हें राष्ट्रपति बनवा कर यही भाजपाई कल अपनी पीठ थपथपा रहे थे तथा देश को भी यह गर्व से बताते थे कि हमने डा० कलाम जैसे महान वैज्ञानिक को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया।

सवाल यह है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के त्याग को भाजपाई त्याग मानने को तो तैयार हैं नहीं। फिर आ$िखर ऐसे में त्यागी राजनीतिज्ञ किसे कहा जा सकता है। क्या ठाकरे को जिसने अपने पुत्र मोह में अपनी पार्टी विभाजित कर डाली और आए दिन समूचे उत्तर भारतीयों को स्वर्ण जडि़त सिंहासन पर बैठकर गालियां देता रहता है व उन्हें प्रताडि़त के निर्देश जारी करता है? या फिर भाजपा के उस बंगारू लक्ष्मण रूपी अध्यक्ष को जिसको पूरे देश ने रिश्वत की रकम लेते हुए अपनी आंखों से देखा और इस रिश्वत कांड के प्रसारित होने के बाद उसे अपने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का ‘महात्याग’ करना पड़ा? या फिर येदिउरप्पा व निशंक जैसे मुख्यमंत्रियों को त्यागी माना जाए जो भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद भारी दबाव पडऩे पर अपने पद छोडऩे पर मजबूर हुए?

13 COMMENTS

  1. सोनिया के दलाल साहब यह बतैगे कि अटल जी की सरकार गिराने के बाद सोनिया गाँधी राष्ट्रपति भवन दावा करने क्यों गई थी कि हमारे पास २७२ सांसदों का समर्थन है और प्रधान मंत्री का दावा पेश किया था जिसे मुलायम सिंह के इंकार के बाद ख़ामोशी अख्तियार कर ली और अब अपने अनुभवहीन-बुध्धू बेटे को प्रधानमंत्री बनवाने के लिए सारी त्याग और सन्यासिनी का नकाब त्याग खुला खेल फर्रुखाबादी खेलने में देश की स्मिता और सम्मान को धुल में मिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती क्या यही महासंयासिनी का असली चेहरा नहीं है जाफरी साहब चापलूसी और भादुअगिरी इसी को कहते है
    धूमिल के शब्दों में देश की मिटटी पर देश का नाम लिख कर खिला देने से कोई राष्ट्र भक्त नहीं बन जाता. जाफरी साहब भगवन आपको सदबुध्धि दे जिससे भादुअगिरी के आरोपों से मुक्ति पाए
    सादर

  2. इतने महाघोटाले न बाल ठाकरे के अधीन सरकार ने किये थे और न ही बंगारू लक्ष्मण के पार्टी अध्यक्ष रहते हुए थे. 2G , CWG , आदर्श और कोयला महाघोटालो को करने वाली सरकार की अध्यक्षा को महात्यागी केवल आप जैसे चमचे ही कह सकते है .गुज्जर आरक्षण आन्दोलन के दौरान रेल लाइन जाम करने पर तो महात्यागी चुप रही पर काले धन पर प्रश्न उठाने पर जालियां वाला बाग़ कांड दोहराया जाता है .जनलोकपाल हो या काला धन सब पर चुप रहना महात्याग की पहली पहचान है तो अफजल और कसाब को गले लगाना दूसरी.

  3. (१)
    १९६८-१९७३ बीच बंगलादेश को पाकिस्तान के चंगुल से छुडाने भारत ने युद्ध छेडा, तो विमान चालकों को बताया गया, कि छुट्टी छोड काम पर लौटिए। तब राजीव (विमान चालक था) सोनिया के कहने पर लम्बी छुट्टी लेकर(इन्दिरा के कारण छुट्टी मिली) इटाली जाकर वहीं रहे थे। क्यों, कि, अमरिकन सैनिक (पोत) भारत की ओर निकला हुआ था, और सोनिया को डर था, संभवतः आशा नहीं थी, कि, भारत बच पाएगा।

    (२)
    वैसे ही जब १९७७ में इन्दिरा चुनाव में पराजित हुयी तब डर कर, सोनिया इतालवी दूतावास में
    जाकर रही, और वहीं घुसी रही। वह इटली जाने तैय्यार थी, संजय उसे समझाकर वापस ले आया।
    — सुब्रह्मण्यं स्वामी की फाइल से।
    क्या बुद्धु बबने के लिए जन्मे हो?

    • मधुसुदन जी इन चमचो को क्या समझा रहे है, इन्हें तो ये भी याद नहीं होगा की माननीय कांग्रेस अध्यक्षा का त्याग तब कहाँ गया था जब कांग्रेस कार्यसमिति से सीताराम केशरी को उठाकर बाहर फेक दिया गया और इनकी त्याग की महारानी ने झट से कार्यभार ग्रहण कर लिया और इनके चमचो ने उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष घोषित कर दिया, २००९ लोकसभा चुनाव से पहले इनके कानून मंत्री हंसराज भरद्वाज स्वयं जाकर लन्दन में सोनिया के पारिवारिक मित्र क्वात्रोची का खाता डीफ्रिज करा देते है और वो महान त्याग की मूर्ति बनी रहती है, तनवीर जी ज्यादा मुंह न खुलवाए गड़े मुर्दों को उखाड़ना हमें भी अच्छा नहीं लगता आगे से ऐसे लेख लिखते समय कुछ सोच लिया करे

  4. जाफरी साहब ..
    अपने संविधान में कुछ नियम और कायदे है .. सोनिया गाँधी की पात्रता नही थी इसलिए वह PM नही बन पाई
    सोनिया की तो बात छोड़ दे … राहुल गाँधी भी PM नही बन पायेगा … सुब्रमनियम स्वामी के पास अभी तुरुप का इक्का है जो वक़्त आने पर जरूर खोलेंगे
    ये खुलासा उन्होंने आप की अदालत में किया है … यू tube पर इसका वीडियो है देख सकते है आप

  5. डा. सुब्रमण्यम स्वामी ने लिख कर सोनिया जी पर अनेक गंभीर आरोप लगाए हैं और उनका कहना है कि वे अपराध इतने संगीन हैं जिनके लिए सोनिया जेल जाने से बच नहीं सकतीं. ‘केजीबी’ के लिये काम करना, अपने जन्म स्थान- शिक्षा और जन्म के सन के बारे में झूठा शपथपत्र भरना, इंदिरा जी की मृत्यु का कारण बनना ( २४ मिनेट तक चिकित्सा न होने देकर ) ,
    केन्द्रीय मंत्री अर्जुन सिंह की सहायता से अरबों रुपये की तस्करी करके भारत की अमूल्य संपदा यूनान भेजना और अपनी बहन की दो दुकानों के माध्यम से उसकी बिक्री करना आदि अनेक गंभीर अपराध हैं इन देवी जी के विरुद्ध. फिर भी जाफरी साहेब पता नहीं किस उद्देश्य की पूर्ति के लिए इन्हें ”त्यागी” बतला रहे हैं. खेत मजदूर माँ और चिनाई के मिस्त्री की संतान जो थोड़ी सी अंग्रेजी पढ़ कर वेट्रेस का काम करती थी, ऐसी निर्धन महिला अचानक अरबों की संपत्ति की स्वामिनी कैसे बन गयी ? जाफरी साहेब मुझे लगता है कि आपने भिंड के छत्ते में हाथ दे दिया है. बल्कि सच तो यह है कि सोनिया माता के रास्ते में कांटे बिछाने का काम कर दिया है. अब देखते जाईये कि इन देवी जी के बारे में क्या-क्या सामने आता है. मैं तो आपका धन्यवाद करूंगा जो आपने इस मुद्दे को उठा कर एक उत्तम अवसर प्रदान कर दिया है. देश के हित में है कि सब को पता चले कि रिमोट से देश को चलाने वाली सोनिया की असलियत क्या है. आखिर इतने विनाशकारी फैसले केंद्र सरकार किसके कहने पर और क्यूँ ले रही है ? कौन है इसके पीछे और कौन है उस पीछे वाले के पीछे.

  6. भाट और चारणों का काम ही होता है चरण वंदना करना, और तनवीर साहब बखूबी यही कर रहे हैं. हकीकत क्या है सब जानते हैं. १० साल बाद फिर से तथाकथित “त्याग “?

  7. सब फालतू की बहस है,जो हो चुका,और अब आज उसके कोई मायने नहीं हैं सिवाए कोई राजनितिक लाभ लेने के,तो ऐसे विषय पर बात कर अपना समय ख़राब करना है.इस समय हमारी राजनीति में कोई भी त्यागी नहीं हैं.सब स्वार्थी हैं,इनके चेले भोंपू बन कर जबरन इन्हें पीर बनाने में लगें है ताकि उन्हें भी कुछ मलाई मौका आने पर मिल सके.हर दल की यही नीयत है.भारतीय राजनीति में इस तरह के शुगफे आये दिन कोई न कोई छेड़ता ही रहता है, ताकि तत्कालीन ज्वलंत प्रशनों से धयान हटाया जा सके, अथवा उसका महत्व कम किया जा सके
    यह सब सोची समझी निति से किया जाता है, जनता को मूर्ख बनाने के लिए राजनितिक दलों के कुछ छुटभैये नेता इसी कम के लिए होतें हैं,यही उनकी राजनितिक कमाई भी होती है.जरूरत जनता को ही सोचने समझने की है,जिसके लिए उसके पास न तो समय है और न इन शातिरों जसी समझ.

  8. विमलेश हिन्दू समाज के प्रतिनिधित्व नहीं करते, न ही तनवीर मुस्लिम समाज का।
    हम लोगों के द्वारा त्यागी विशेषण का काफी उदारता से इस्तेमाल किया जाता रहा है. सुविधा और मोर्चाबंदी के लिए समय समय पर उठाए गए राजनीतिक फैसलों को त्याग की संज्ञा दी जाती रही है। जिसे हम त्याग कहते हैं, वह जिम्मेदारी से मुकरना भी तो हो सकता है। सोनिया गाँधी के कदम को सत्ता की आउटसोर्सिंग भी तो कहा जा सकता है। इस पर तो विवाद नहीं होना चाहिए कि कांग्रेस के पास सोनिया गाँधी का विकल्प नहीं है सोनिया गाँधी राजनीति में घसीट ली गई है।

  9. मुश्लिम समाज कब जागेगा जो की तनवीर जाफरी जैसे सत्ता के दलालों के बंधन में जकड़ा हुआ है जो बेचारे नौजवानों को गुमराह करते रहते है स्वयम मजे करते है .

    धनी है यह धर्म और धनी है इसके मानाने वाले जो दलालों के इशारो पर नाचते है.

  10. lagta h ap congress k corouption m andhe ho gaye h pure facts jama krke fir post dala kro adha sach jhuth se bhi jada khatarnaak hota h to apni congress ko wo letter bhi sarwajanik krne ko bolo jisme kalaam sahab ne baad m unhe likha tha ki ap sanvidhaan ki kuch dharayo k kaaran pradhanmantri nahi bn sakti. or ha agay se pura sach likhna lekhakh ko nishpaksh hona chahiye banguru to dikh gaya lekin pranav chidambaram ka corruption or abhishek ki cd nahi dikhti tumhe

  11. पर एक प्रश्न अब भी अनुत्तरित है. क्या कारन था और है क़ानूनी और संवैधानिक रूप से सक्षम होने के बावजूद भी सोनिया का प्रधानमंत्री पद को नकारना. विपक्षी दलों की अवहेलना भी की जा सकती थी. ‘त्याग’ जैसे शब्दों पर विश्वास करना कठिन है.

Leave a Reply to om prakash shukla Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here