सोनिया गाँधी ने सुलझायी कर्नाटक की उलझन 

                      प्रभुनाथ शुक्ल

सोनिया गांधी के हस्तक्षेप के बाद अब कर्नाटक संकट खत्म हो गया है। कर्नाटक में कांग्रेस के पक्ष में नतीजे आने के बाद भी मुख्यमंत्री को लेकर जिस तरह की उठापटक जारी थी उसका संदेश जनता के बीच गलत जा रहा था और कांग्रेस की जीत पर बुरा असर डाल रही थी। लेकिन सोनिया गांधी ने वक्त रहते इस समस्या का समाधान कर दिया। कांग्रेस की यह दूसरी सबसे बड़ी जीत है, क्योंकि उसने  घर के झगड़े को निपटा दिया। पार्टी को मिले भारी जनादेश की मांग भी यही रहीं। कांग्रेस ने घरेलू झगड़े को निपटा कर राजनीति में अपनी साख को और बेहतर किया है।यह  भाजपा के लिए आंतरिक रूप से झटका है। क्योंकि यह विवाद जितना लंबा खींचता भाजपा कांग्रेस की जीत पर उतना तीखा हमला करती। लेकिन समय रहते सोनिया गांधी ने अच्छा फैसला लिया।

कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के हस्तक्षेप के बाद यह संदेश साफ हो गया है कि उन्होंने राजनीति से भले सन्यास लिया हो, लेकिन पार्टी में दस जनपथ यानी गांधी परिवार का हस्तक्षेप उतना ही मजबूत है जितना कभी था और है। यह दीगर बात है कि पार्टी की कमान इस वक्त खड़गे के हाथ में है। पार्टी में सोनिया गांधी की साख एक अलग तरीके की है। सोनिया गाँधी एक सुलझी हुईं और गंभीर महिला हैं। हालांकि वह बोलती कम है, लेकिन पार्टी पर जब चौतरफा हमला होता है तो वह खुद आगे आकर  कमान संभालती हैं।

डीके शिवकुमार सोनिया गांधी के बेहद करीबी हैं। सोनिया गांधी के आशीर्वाद से ही डीके शिवकुमार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए। क्योंकि तिहाड़ जेल में जब शिवकुमार बंद थे तो सोनिया गांधी स्वयं उनसे मिलने गई थी। ऐसे हालात में डीके शिवकुमार को सोनिया गांधी के सामने झुकना ही पड़ा। हालांकि डीके शिवकुमार को सोनिया गांधी ने पूरा भरोसा दिया है की उनका पूरा ख्याल रखा जाएगा और वे प्रदेश अध्यक्ष साथ उपमुख्यमंत्री की भी कमान वह संभालेंगे।

कर्नाटका में कांग्रेस की जीत हुई है, लेकिन पूरा विपक्ष एक तरह से खुद की जीत इसे मान रहा है। क्योंकि जिस तरह कांग्रेस ने भाजपा को पटखनी दी है। विपक्ष के लिए आक्सीजन मिल गया है। विपक्ष को भी एक बात समझना होगा कि बगैर कांग्रेस के विपक्ष भजपा से यह लड़ाई नहीं जीत सकता है। उसे कांग्रेस के साथ खड़े रहना होगा। विपक्ष में काफी उम्मीदें बढ़ गई हैं। कर्नाटक की जीत के बाद विपक्ष को 2024 लोकसभा  चुनाव दिख रहा है।

 पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी अब कांग्रेस के करीब आने लगी। उन्होंने तकरीबन 200 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस का सहयोग करने की बात कहा है। निश्चित रूप से कर्नाटक में कांग्रेस नहीं पूरे विपक्ष की जीत है। लेकिन इस चीज को कांग्रेस को बनाए रखना होगा। विशेषकर उसे भ्रष्टाचार के आरोपों से बचना होगा। आम लोगों को स्वच्छ पारदर्शी  प्रशासन उपलब्ध कराना होगा। राज में अफसरशाही को और लचीला बनाना होगा। सरकार को सीधे जनता से ताल्लुक रखना होगा। चुनाव में किए गए वादे को पार्टी को शत प्रतिशत  निभाना होगा। हालांकि राहुल गांधी पहले ही कह चुके हैं कि राज्य में सरकार बनते ही उन घोषणाओं पर अमल किया जाएगा। लेकिन सबसे पहले जनता की मूलभूत जरूरतों और स्वच्छ एवं पारदर्शी प्रशासन की आवश्यकता है। अगर ऐसा होता है तो लोकसभा चुनाव में पार्टी को अच्छाखासा परिणाम मिल सकता है। 

कर्नाटक के सत्ता की कमान अब सिद्धारमैया के हाथ में होगी। रमैया एक मजे हुए राजनेता है और राज्य के मुख्यमंत्री की कमान कई बार संभाल चुके हैं। लिंगायत और दूसरे समाज के लोगों में भी उनकी अच्छी खासी पकड़ है। दलित समाज के लोग भी उन्हें अच्छी तरजीह देते हैं। जबकि डीके सुकुमार का प्रभाव राज्य के कुछ निश्चित इलाके तक ही सीमित है। दूसरी तरफ उन पर भ्रष्टाचार के कई आरोप है। कांग्रेस अगर उन्हें मुख्यमंत्री बना देती तो निश्चित रूप से केंद्रीय जांच एजेंसियां उनके और पार्टी के लिए मुसीबत बन सकती हैं। उस हालत में जहां कांग्रेस की छवि खराब होती है वहीं पार्टी को करारा झटका लगता। ऐसे हालात में पार्टी किसी भी प्रकार का जोखिम नहीं लेना चाहती थी। जिसकी वजह से कर्नाटक संकट के हल के लिए सोनिया गांधी को डीके शिवकुमार से बात करनी पड़ी। जबकि सोनिया गांधी से मुलाकात के पूर्व वे मुख्यमंत्री पद लेने पर पड़े थे। हालांकि सोनिया गांधी के हस्तक्षेप के बाद मान गए।

सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच पेंच को सुलझाने के लिए 30-30 महीने के कार्यकाल के लिए दोनों को मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव भी रखा गया लेकिन डीके शिवकुमार को यह बात मंजूर नहीं थी। शिवकुमार राहुल गांधी से भी मिले, लेकिन वह मुख्यमंत्री पद छोड़ने को तैयार नहीं दिखे। फिर बात सोनिया गाँधी तक गयीं। सोनिया गांधी और शिव कुमार की  मुलाकात का इतना असर हुआ कि वह अपनी उन्होंने अपनी जिद छोड़ दिया और कांग्रेस को संकट से उबार लिया।

डीके शिवकुमार मुख्यमंत्री पद पर अड़े रहते तो कांग्रेस के लिए बड़ा संकट बन सकता था। हालांकि राज्य में शिव कुमार ने अच्छा काम किया है जिसकी वजह से पार्टी को जीत भी मिली। कांग्रेस की जीत में शिवकुमार की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। सांगठनिक स्तर पर कांग्रेस को मजबूती दिलाने में उनकी अच्छी खासी भूमिका रही है। वैसे मुख्यमंत्री बनाने का अंतिम फैसला खरगे पर छोड़ दिया गया था। लेकिन जब उनकी नहीं चली तो उन्हें सोनिया गांधी से निवेदन करना पड़ा। फिर सोनिया गांधी के हस्तक्षेप के बाद शिवकुमार अपने रास्ते पर आ गए हैं।

कर्नाटक में इसके पूर्व परम्परा रहीं थी कि प्रदेश अध्यक्ष रहने वाले को मुख्यमंत्री पद दिया जाता था। 1989 में वीरेंद्र पाटिल और 1999 में एमएस कृष्णा को मुख्यमंत्री बनाया गया था। हालांकि बीबीसी के अनुसार इस दौरान गुप्त मतदान भी कराया गया था। उस दौरान यह प्रस्ताव खड़गे की तरफ से दिया गया था। कर्नाटक चुनाव नतीजे आने के बाद डीके शिवकुमार बेहद भावुक हो गए थे। अच्छी खासी जीत की उम्मीद उन्हें भी नहीं थी, लेकिन आशा के विपरीत मिली सफलता से वह भावुक हो गए और सोनिया गांधी के प्रति आभार भी जताया।

कर्नाटक में सिद्धारमैया की छवि बेहद साफ-सुथरी है। वह एक कुशल प्रशासक के रूप में भी जाने जाते हैं। भ्रष्टाचार का कोई बड़ा आरोप नहीं है। चुनाव के बाद उन्होंने कहा था यह उनका अंतिम चुनाव होगा। जिसकी वजह से जनता की ओर से कांग्रेस और उन्हें सहानुभूति का लाभ में मिला। समाज के सभी वर्गों में उनकी अच्छी खासी पैठ। सभी लोगों को एक साथ लेकर चलते हैं। फिलहाल कांग्रेस बड़ी सूझबूझ से अपने घर के झगड़े को निपटा लिया है। यह उसकी सबसे बड़ी कूटनीतिक और नैतिक सफलता है। अब  कर्नाटक जीत के बाद उसे राज्य की जनता और उसके भरोसे को जीतना होगा।

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