
रोज सबेरे मेरे कमरे में
खिड़की से आती गौरैया
अपनी मीठी आवाजो से
मुझको है जगाती गौरैया
समय से कोई कार्य करने
हमें है सिखलाती गौरैया
चहक चहक की बोली से
मन मेरा भरमाती गौरैया
फुदक फुदक कर परी जैसी
घर की रौनक बढ़ाती गौरैया
उसी मे खो कर रह जाऊ मैं
चुपके से कह जाती गौरैया
कभी आँगन कभी बरामदे में
और माँ के रूम में जाती गौरैया
चारों तरफ घूम घूमकर मस्ती में
पीती पानी और दाना खाती गौरैया
बहुत सुन्दर! प्रवेश कुमार सिन्हा जी को मेरा साधुवाद|
गौरैया से गाय तक
जीवन था अपना
प्रकृति की कोख में
सीमित था सपना
आज जब गौरैया को पढ़ता हूँ
लौट कर फिर से
गाँव जाने को तड़पता हूँ