कविता

गौरैया

गौरेया

रोज सबेरे मेरे कमरे में
खिड़की से आती गौरैया
अपनी मीठी आवाजो से
मुझको है जगाती गौरैया

समय से कोई कार्य करने
हमें है सिखलाती गौरैया
चहक चहक की बोली से
मन मेरा भरमाती गौरैया

फुदक फुदक कर परी जैसी
घर की रौनक बढ़ाती गौरैया
उसी मे खो कर रह जाऊ मैं
चुपके से कह जाती गौरैया

कभी आँगन कभी बरामदे में
और माँ के रूम में जाती गौरैया
चारों तरफ घूम घूमकर मस्ती में
पीती पानी और दाना खाती गौरैया