शांति और विकास के लिए विज्ञान के साथ अध्यात्म जुड़े

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-ललित गर्ग 

शांति और विकास के लिए विश्व विज्ञान दिवस हर साल 10 नवंबर को मनाया जाता है। विश्व विज्ञान दिवस का प्रस्ताव पहली बार 1999 में हंगरी के बुडापेस्ट में आयोजित विश्व विज्ञान सम्मेलन के दौरान रखा गया था। यूनेस्को और अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान परिषद द्वारा आयोजित इस सम्मेलन में इस बात पर चर्चा की गई कि विज्ञान समाज पर किस प्रकार प्रभाव डालता है और समाज के लिये अधिक उपयोगी हो सकता है। इसी उद्देश्य से विज्ञान की अहमियत को सामने लाना और विज्ञान से जुड़े मुद्दों पर आम लोगों की बहस को बढ़ावा देकर इस दिन के ज़रिए, विज्ञान को समाज एवं व्यक्ति से और ज्यादा करीबी से जोड़ा गया है। यह दिन हमारे दैनिक जीवन में विज्ञान के महत्व और उसकी प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए युग की समस्याओं एवं चुनौतियों का समाधान करता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि कैसे विज्ञान जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों और प्राकृतिक आपदाओं जैसी वैश्विक समस्याओं को हल करने में मदद करता है। यह युवाओं को विज्ञान का पता लगाने और दुनिया कैसे काम करती है, इस बारे में जिज्ञासा विकसित करने के लिए भी प्रोत्साहित करता है। जागरूकता बढ़ाकर, विश्व विज्ञान दिवस लोगों को समाज पर वैज्ञानिक अनुसंधान और नवाचार के सकारात्मक प्रभाव की सराहना करने के लिए एक साथ लाता है। लेकिन अब इस दिवस के साथ अध्यात्म को भी जोड़ा जाना चाहिए।
तेजी से बदलती दुनिया में कई महत्वपूर्ण कारणों से हमारे दैनिक जीवन में विज्ञान महत्वपूर्ण है और समाज पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ता है। विज्ञान दिवस उन वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं की कड़ी मेहनत को मान्यता देता है जिन्होंने ज्ञान और प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने में मदद की है। यह दिन वैज्ञानिकों, शिक्षकों और जनता के बीच टीमवर्क को बढ़ावा देता है ताकि वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए विश्वास और समर्थन का निर्माण किया जा सके। विज्ञान दिवस मनाकर, हमारा उद्देश्य सभी में विज्ञान के प्रति जिज्ञासा और प्रेम-संबंध को प्रेरित करना है, जिससे एक अधिक आदर्श, संतुलित एवं शांतिपूर्ण समाज का निर्माण हो सके। वैज्ञानिक खोजें दुनिया भर में शांति और विकास में सहयोग करते हुए लोगों को नई वैज्ञानिक प्रगति के बारे में बताती है। गरीबी, पर्यावरण संरक्षण और स्वास्थ्य चुनौतियों जैसी वैश्विक समस्याओं को हल करने के लिए विज्ञान के ज़िम्मेदाराना उपयोग को प्रोत्साहित भी करती है। वैज्ञानिक इस उल्लेखनीय नाजुक ग्रह एवं सृष्टि के बारे में हमारी समझ को व्यापक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिसे हम अपना घर कहते हैं और हमारे समाजों को अधिक टिकाऊ बनाने में भूमिका निभाते हैं।
शांतिपूर्ण और स्थायी समाज के लिए विज्ञान की भूमिका पर जन जागरूकता को मजबूत करते हुए यह दिवस विभिन्न देशों के बीच साझा विज्ञान के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एकजुटता को बढ़ावा देता है। समाज के लाभ के लिए विज्ञान के उपयोग के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता को नवीनीकृत करना तथा विज्ञान के सामने आने वाली चुनौतियों की ओर ध्यान आकर्षित करना और वैज्ञानिक प्रयास के लिए समर्थन जुटाना भी इस दिन का ध्येय है।. आज जबकि जलवायु परिवर्तन अरबों लोगों और ग्रह के जीवन के लिए एक गंभीर खतरा बनता जा रहा है, इसके लिये जलवायु परिवर्तन को सकारात्मक मोड़ देने के लिए विश्व समुदायों का निर्माण करने की अपेक्षा है। यह दिवस हमारे दैनिक जीवन पर विज्ञान के प्रभाव का प्रतीक है। यह हमें वैज्ञानिक प्रगति को आकर्षित करने और हमारे ग्रह के संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र की अधिक गहन समझ को प्रोत्साहित करने का आग्रह करता है। विज्ञान के ज़रिए वैश्विक चुनौतियों से निपटने में मदद करना और विज्ञान और प्रौद्योगिकी में करियर बनाने के लिए युवाओं को प्रेरित करना भी इस दिवस का मकसद रहा है।
यूनेस्को द्वारा 2001 में इसकी घोषणा के बाद से, शांति और विकास के लिए विश्व विज्ञान दिवस ने दुनिया भर में विज्ञान के लिए कई ठोस परियोजनाएं, कार्यक्रम और वित्तपोषण उत्पन्न किया है। इस दिवस ने संघर्ष से प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले वैज्ञानिकों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने में भी मदद की है, इसका एक उदाहरण यूनेस्को द्वारा समर्थित इजरायल-फिलिस्तीनी विज्ञान संगठन का निर्माण है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2024-2033 की अवधि को सतत विकास के लिए विज्ञान के अंतर्राष्ट्रीय दशक के रूप में घोषित किया है। यह एक स्थायी भविष्य के लिए वैज्ञानिक ज्ञान का दोहन करने के वैश्विक प्रयासों में एक महत्वपूर्ण कदम है। यूनेस्को के नेतृत्व में, इस दशक का उद्देश्य बुनियादी और अनुप्रयुक्त विज्ञान, सामाजिक और मानव विज्ञान, साथ ही अंतःविषय और उभरते क्षेत्रों सहित वैज्ञानिक विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला को संगठित करना है, ताकि समाज, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण में परिवर्तनकारी बदलाव में योगदान दिया जा सके। वैज्ञानिक साक्षरता को बढ़ावा देने और सरकारों, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करके, दशक सतत विकास लक्ष्यों को आगे बढ़ाने और सभी के लिए सुरक्षित, अधिक समृद्ध, शांतिपूर्ण भविष्य की दिशा में काम करने में विज्ञान की भूमिका को बढ़ाने का प्रयास करता है। निश्चित ही विज्ञान ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार किया है, रोज़गार के अवसर बढ़ाए हैं, असंख्य लोगों की जान बचाई है, कई उद्योगों में अहम भूमिका निभाई है, ऊर्जा और पानी तक पहुंचने में मदद की है, बीमारियों को ठीक करने में मदद की है, चिकित्सा-क्रांति का माध्यम बनकर कर असाध्य बीमारियों को नियंत्रित किया है।
 विकास, विज्ञान एवं उपलब्धियों पर सवार आज की दुनिया का एक बहुत बड़ा वर्ग आज भी गरीबी, अभाव, भूखमरी में घुटा-घुटा जीवन जीता है, जो परिस्थितियों के साथ संघर्ष नहीं, समझौता करवाता है। हर वक्त अपने आपको असुरक्षित-सा महसूस करता है। जिसमंे आत्मविश्वास का अभाव अंधेरे में जीना सिखा देता है। विश्व की करीब दो अरब तीस करोड़ आबादी को भूखमरी एवं भूख का सामना करना पड़ रहा है। दो वक्त की भोजन सामग्री जुटाने के लिए इस आबादी को जिन मुश्किलों, संकटों एवं त्रासद स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है,  ऐसी जटिल स्थितियों में विज्ञान दिवस ने सभी को भोजन देने में मदद की है, शांति एवं सह-जीवन के निर्माण में मदद की है।
विज्ञान दिवस को अधिक उपयोगी एवं प्रासंगिक बनाने की अपेक्षा है। अब तक विज्ञान अध्यात्म से अछूता रहा है, जिसके कारण विज्ञान के वास्तविक परिणाम सामने नहीं आ पाये हैं। जरूरत है अध्यात्म एवं विज्ञान के समन्वित प्रयत्नों की, आध्यात्मिक-वैज्ञानिक व्यक्तित्वों के निर्माण की। नये सत्यों को खोजने की। न्यूटन से कहा गया- ‘आपने बहुत से नियम खोजे हैं।’ उन्होंने बहुत मार्मिक उत्तर दिया- ‘तुम लोग कुछ भी कहो। लेकिन मेरी स्थिति तो समुद्र के तट पर खड़े उस बालक जैसी है, जो समुद्र के किनारे पड़ी सीपियों को बटोर रहा है। किन्तु विशाल समुद्र के गर्भ में छिपे रत्न उससे बहुत दूर हैं। विज्ञान की स्थिति भी अध्यात्म के बिना लगभग ऐसी ही है। विज्ञान एवं वैज्ञानिक व्यक्तित्व तभी अधिक प्रासंगिक हो सकेगे जब चेतना की खोज, मानव की खोज होगी। आज इसकी सर्वाधिक अपेक्षा है। मानव की खोज बहुत कम हुई है। वैज्ञानिकों ने जितने परीक्षण किये हैं, चूहों पर, मेढकों और बन्दरों पर किए हैं। सारे प्रयोग पशुओं पर हुए हैं। मनुष्य को उसने अपनी प्रयोग भूमि नहीं बनाया। मनुष्य को समझने का सबसे कम प्रयत्न हुआ है।
अब आवश्यकता है कि मानव का भलीभांति अध्ययन हो। मानवीय मस्तिष्क का अध्ययन उसमें प्रमुख बने। हमारी सारी शिक्षा, सभ्यता, संस्कृति, तकनीकी विकास, सारे जीवन-मूल्य-इनका अधिष्ठाता प्रतिष्ठाता तो मनुष्य का मस्तिष्क है, नाड़ीतंत्र है, ग्रंथितंत्र है। इन सबका अध्ययन तो नहीं किया जा रहा है, समझने का प्रयत्न नहीं किया जा रहा है, सारी रिसर्च पदार्थ पर हो रही है। यह मूल में भूल है। फिर समस्या का समाधान कैसे होगा? आवश्यक है मानव और मानवीय चेतना का अध्ययन। जिस दिन यह हमारी वृत्ति बनेगी उस दिन अध्यात्म और विज्ञान, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक व्यक्तित्व की युति बनेगी, दोनों का योग बनेगा, दोनों एक बनेंगे, तभी विश्व विज्ञान दिवस मनाना सार्थक होगा। आध्यात्मिक गुफा में मौन बैठा रहेगा और वैज्ञानिक अणुबम बनाता रहेगा तो उस अणुबम की अणुधूलि उस गुफा तक भी पहुंचेगी। इसलिए आज की अपेक्षा है कि हर विद्यार्थी वैज्ञानिक बने किन्तु कोरा वैज्ञानिक न बने, आध्यात्मिक वैज्ञानिक बने। आज हर धर्म संस्थान में जाने वाले व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि वह केवल आध्यात्मिक न बने, उसका दृष्टिकोण वैज्ञानिक बने। इन दोनों का योग ही वर्तमान की सारी समस्याओं-जलवायु परिवर्तन, युद्ध, हिंसा, आतंक, गरीबी, महामारियों का समाधान है और यही विज्ञान दिवस का पहला प्रयत्न या पहला प्रस्थान अधिक उपयुक्त हो सकता 

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