खेल भावना

एक सड़क पर मक्खी मच्छर

बैठ गये शतरंज खेलने,
थे सतर्क बिल्कुल चौकन्ने
एक दूजे के वार झेलने।


मक्खी ने जब चला सिपाही
मच्छर ने घोड़ा दौड़ाया,
मक्खी ने चलकर वजीर को
मच्छर का हाथी लुड़काया।


मच्छर ने गुस्से के मारे
ऊँट चलाकर हमला बोला,
मक्खी ने मारा वजीर से
ऊँट हो गया बम बम भोला।


ऊँट मरा जैसे मच्छर का
वह गुस्से से लाल हो गया
मक्खी बोली यह मच्छर तो
अब जी का जंजाल हो गया
मच्छर ने तलवार उठाकर
मक्खीजी पर वार कर दिया


मक्खी ने मच्छर का सीना
चाकू लेकर पार कर दिया
मच्छर और मक्खी दोनोँ का
पल में काम तमाम हो गया,
देख तमाशा रुके मुसाफिर
सारा रास्ता जाम हो गया।


खेलो खेल भावना से ही
खेल हमेशा भाई,
खेल खेल में लड़ जाने से
होती नहीं भलाई।

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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