स्टाम्प पेपर वाली निष्ठा

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congressआप चाहे कुछ भी कहें साहब, पर मैं हर क्षेत्र में नये विचार और प्रयोगों का पक्षधर हूं। भले ही पुरातनपंथियों को मेरी बात पसंद न आये; पर मैं अपने विचारों पर जितना दृढ़ कल था, उतना ही आज हूं और कल भी रहूंगा।

असल में कल शाम को पार्क में इसी विषय पर चर्चा हो रही थी। हमारे प्रिय मित्र शर्मा जी मेरी बातों से प्रायः सहमत नहीं होते।

– वर्मा जी, मैं नये विचारों का सौ प्रतिशत विरोधी नहीं हूं; पर पहले यह जरूर देख लेना चाहिए कि नये के चक्कर में कहीं पुराने से भी हाथ न धो बैठें।

– शर्मा जी, पुराना जाएगा, तभी तो नया आएगा।

– लेकिन बुजुर्गों ने कहा है कि नया नौ दिन, पुराना सौ दिन।

– बुजुर्गों की राय सिर माथे शर्मा जी; पर दुनिया का इतिहास इस बात का साक्षी है कि जिन लोगों ने नये रास्ते खोजने के लिए खतरे उठाये, उन्हें ही आज लोग याद करते हैं। भले ही उनका उद्देश्य व्यापार हो या लूटपाट; गुप्त खजाने की खोज हो या अपने साम्राज्य का विस्तार। आपने ये तो सुना ही होगा –

लीक लीक गाड़ी चले, लीके चले कपूत
लीक छोड़कर तीन चलें, शायर सिंह सपूत।।

– हां, सुना तो है।

– शर्मा जी, किसी समय राशन, सोना-चांदी या जमीन के व्यापारी सेठ कहलाते थे; पर आज दुनिया में शीर्ष पैसे वाले वही हैं, जो कम्प्यूटर में घुसे हैं। चाहे माइक्रोसॉफ्ट का बिल गेट्स हो या फेसबुक वाला मार्ग जुकरबर्ग। सब उंगलियों के खेल में माहिर हैं। दुनिया में कोई भी कारोबार बिना पूंजी के नहीं होता; पर इस कारोबार में पंूजी की नहीं, एक अदद लैपटॉप और कल्पनाशील दिमाग की जरूरत होती है। ये दोनों हों, तो कोई पेड़ के नीचे या छत के ऊपर बैठकर भी कारोबार कर सकता है।

– तुम्हारे दो मील लम्बे इस भाषण का मतलब क्या है वर्मा ?

– मतलब बिल्कुल साफ है कि आज का युग नये प्रयोग करने वालों का है। जो प्रयोग नहीं करता, वह जमाने की दौड़ में पिछड़ जाता है। कबीरदास जी ने भी इसका समर्थन करते हुए कहा है –

जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ
मैं बूड़ा डूबन डरा, रहा किनारे बैठ।।

– इस मामले में तो हमारे राहुल बाबा का कोई मुकाबला नहीं है ?

– जी हां। लोकसभा चुनाव में उनका प्रयोग इतना सफल रहा कि उनके पार्टीजन अधिकांश राज्यों में भी इसे अपना रहे हैं। बंगाल में पिछला चुनाव वे ममता बनर्जी के साथ मिलकर लड़े थे, तो इस बार वामपंथियों से मिल गये। ये बात दूसरी है कि पिछली बार जीतने के बाद ममता ने उन्हें दुत्कारा था, तो इस बार ये काम खुशी-खुशी जनता ने ही कर दिया।

– लेकिन इस बार उन्हें पिछली बार से अधिक सीटें मिली हैं।

– यही तो नये प्रयोग की खूबी है। बंगाल में दोस्ती और केरल में दुश्मनी। बेचारे दोनों जगह से गये –

न खुदा ही मिला न बिसाल ए सनम
न इधर के रहे न उधर के रहे।।

– मुझे ऐसी मजाक पसंद नहीं है वर्मा।

– मेरी ऐसी औकात कहां है शर्मा जी। मैं तो ये कह रहा हूं कि सफल इन्सान वही है, जो लगातार प्रयोग करता रहे। आज घाटा हुआ, तो कल लाभ भी हो सकता है। तुलसी बाबा ने भी तो ‘‘हानि लाभ जीवन मरण, जस अपजसु बिधि हाथ’’ की बात कही है।

– लेकिन नुकसान तो उन्हें असम में भी उठाना पड़ा है।

– कोई बात नहीं शर्मा जी। किसी ने लिखा है –

गिरते हैं शह सवार ही मैदाने जंग में
वो क्या गिरेंगे जो सदा घुटनों के बल चले।।

– वर्मा, मुझे आज तुम्हारा व्यवहार समझ नहीं आ रहा है। कभी तुम अपनी बात ऊंची कर देते हो, कभी मेरी ?

– शर्मा जी, प्रश्न आपकी या मेरी बात का नहीं, नये प्रयोगों का है। जैसे बंगाल के कांग्रेसी विधायकों ने एक ऐसा नया प्रयोग किया है, जो दुनिया में आज तक किसी ने नहीं किया।

– वो क्या ?
– उन्होंने सौ रु. के सरकारी स्टाम्प पेपर पर लिख कर दिया है कि धरती चाहे इधर से उधर हो जाए, पर वे सोनिया जी और राहुल जी के प्रति निष्ठावान रहेंगे।

– वाह, इस प्रयोग से तो लगता है कि हमारा लोकतंत्र बहुत प्रगति कर रहा है।

– शर्मा जी, ये प्रगति नहीं, अधोगति है। पहले लोग देश के प्रति निष्ठावान होते थे। फिर पार्टी के प्रति हुए और अब नेताओं के प्रति हो रहे हैं।

– लेकिन फिर भी ये नया प्रयोग तो है। और तुम हमेशा नये प्रयोगों के पक्ष में रहते हो ?

– पर मुझे इसमें एक और नये प्रयोग के संकेत नजर आ रहे है।

– वो क्या ?

– वो ये कि आज उन्होंने सौ रु. के स्टाम्प पेपर पर निष्ठा प्रदर्शित की है, तो कल पांच सौ रु. के पेपर पर वापस भी ले सकते हैं।

शर्मा जी का चेहरा फक हो गया। ऐसा लगा जैसे किसी ने स्टाम्प पेपर का ऊपर वाला हिस्सा ही फाड़ दिया हो।

– विजय कुमार,

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