कविता

वैसा वैभव बेकाम की जो मिले किसी के रुदन में

—विनय कुमार विनायक
दूसरों के प्रति
जितनी जहर होती इंसानी जेहन में
उतनी ही जहर
उग आती संतान के बीज बपन में!

जिसने जितना विष घोला
रिश्ते और पराए जीवन में
उतना हलाहल लहलहाएगा
निज संतति के अंतर्मन में!

कोई जितनी घृणा द्वेष फैलाते
बड़े छोटे स्वजन में
वो सब कुछ उन्हें लौटकर आते
उनके वृद्धापन में!

अगर मां पिता बंधु को
अपमानित किया धनार्जन में
तो वे असहाय व निर्धन
होते जीवन के अंतिम क्षण में!

अगर पसीजता नहीं दिल
जीव जंतुओं के हनन में
तो कुछ भी नहीं
समझें अंतर स्वयं और रावण में!

वैसा वैभव बेकाम की
जो मिले किसी के रुदन में
वैसा धन संचय व्यर्थ
जो काम न आवे स्वजन में!

सच्चा मानव वही है
जो भेद ना करे जन जन में
धर्म मज़हब जाति के कारण
खेद नहीं करते मन में!
—विनय कुमार विनायक