मातमपुर्सी की जितनी मौलिक फुर्ती दुखीलाल को कुदरत ने बख्शी है उस जोड़
का दूसरा प्राणी इस पृथ्वी ग्रह पर तो क्या टोटल ब्रह्मांड के किसी ग्रह
पर मिलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है। परेशानी की चिर-परिचित
लोकप्रियमुद्रा में आवाज से संवेदना का झुनझुना बजाते, गंभीर मटरगश्ती
करते हुए वे हादसे के शिकार घर में ऐसे करीने से घुसपैठ करते हैं मानो
पड़ोसी देश की आई.एस.आई. से भरपेट ट्यूशन पढ़कर ही वे इस क्षेत्र में
कूदे हों। हादसाग्रस्त क्षेत्र में इनकी आमद उतनी ही जरूरी है जितनी कि
खून-खच्चर वाले एक्सीडेंट में एंबुलैंस की। ये जिसके घर से बरामद हों समझ
लीजिए उस घर में हंड्रेड परसेंट मनहूसियत पिकनिक मना रही होगी। दुखीराम
के दिल में दुःख के दिखावे की इतनी वेरायटियां चिल्ल-पौं करती रहती हैं
कि अचकचा कर के सहानुभूतियों की किचकिच मुंह की बालकनी से कूद-कूद कर
मौका-ए-वारदात पर रायते की तरह फैल जाती हैं। हादसों की इस रंग-बिरंगी
आतिशबाजी से दुखीराम की नज़रों के नजारों में हमेशा दिवाली की रौनक सजी
रहती है। दुर्घटनाएं दुखीराम की प्रसन्नता की खुराक हैं। स्यापे की
मोबाइल अकादमी हैं हमारे दुखीरामजी। शादी-ब्याह में बैंडपार्टी और ग़म की
नुमाइश में दुखीराम की मौजूदगी माहौल को झकाझक झकास बना देती है। दुःख
जताने के इनके इस खुशहाल हुनर ने इन्हें कंगाल से बंगाल बना दिया है।
कहीं कोई स्टेंडर्ड अपराध हो जाए तो लोग उत्साह में आकर सीबीआई जांच की
मांग करने लगते हैं वैसे ही मातमपुर्सी के महत्वपूर्ण और संगीन रचनात्मक
आयोजन की सफलता के लिए समझदार लोग सर्वसम्मति से दुखीराम को बुलाए जाने
की मांग करते हैं। दुखीराम के आते ही स्यापे का माहौल लेमोनेड की सनसनाती
ताज़गी से भर जाता है। सिसकारियों की रेंप पर चीखें केटवॉक करने लगती
हैं। शोक प्रदर्शन दुखीराम के जीवन का इकलौता शौक है। स्वास्थ्यवर्धक
दैनिक व्यायाम है। दुःख के दुर्दांत द्रोणाचार्य है दुखीरामजी। जो सुख के
उत्साही एकलव्य का मौका पड़ते ही अंगूठा काट लेते हैं। दुर्घटनाओं के
दुःशासन है- दुखीराम जो प्रसन्नता की द्रौपदी के चीरहरण के धाराप्रवाह
आयटम की गोल्डन जुबली मना चुके हैं। और इस कर्कश-क्रूर क्रीड़ा में पूरे
मनोयोग के साथ अभी तक डटे हुए हैं। और किसी असामयिक खुशी के सदमे से जब
तक मर नहीं जाते तब तक डटे ही रहेंगे। इनकी स्तुति में कितनी भी गालियां
समर्पित की जाएं सब थोड़ी ही रहेंगी। मातमपुर्सी करने का दुखीराम को
नेशनल परमिट हासिल है। स्यापे की साफ-सुथरी और निःशुल्क सेवा के
कारपोरेट-पुरुष… दिखने में गोबर मगर परफोर्मेंस में सोबर दुखीराम जिस
जगह नहीं बुलाए जाते उस स्यापा-समारोह में वे आवश्यकरूप से जरूर जाते
हैं। क्योंकि इनका मानना है कि सुख में भले ही मत जाओ मगर दुःख में तो
जरूर-ही-जरूर जाओ। और फिर जिसे दुःख में ही शरीक होने में सुख मिलने लगे
वह तो करेला सो भी नीम चढ़ा हो जाता है। दुःख भी सुखी हो जाता है
दुखीरामजी से गलबहिंया करके। दुःख में खुशी की खबर हैं- दुखीरामजी। जो
हादसों के हाइवे पर रात-दिन क्राइम पेट्रोल कर स्यापों का सुराग लेते
रहते हैं। सल्तनत-ए-मर्सिया के दुखड़ेआजम हैं हमारे- दुखीरामजी। हम
इन्हें आदाब बजा लाते हैं।