समाज

घुसपैठ पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त ललकार

-डॉ. मयंक चतुर्वेदी

भारत आज एक ऐसी चुनौती से जूझ रहा है जिसे राजनीतिक शोरगुल और मानवीय दलीलों की आड़ में अक्सर दबा दिया जाता है, जबकि उसकी तीक्ष्णता लगातार बढ़ रही है। बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों की बढ़ती संख्‍या अब केवल आंकड़ों का खेल नहीं रही है, यह देश की सामाजिक संरचना, सुरक्षा व्यवस्था और आर्थिक संतुलन को गहराई तक चोट पहुँचा चुकी समस्या बन चुकी है। अलग अलग आकलनों के अनुसार भारत में दो करोड़ से लेकर छह करोड़ तक अवैध घुसपैठिये मौजूद हो सकते हैं। केवल पश्चिम बंगाल में पचपन से साठ लाख तक और असम में पचास लाख तक की संख्या बताई जाती है। गुजरात, दिल्ली और महाराष्ट्र में लगातार चल रही छापेमार कार्रवाइयाँ इस संकट की जड़ें कितनी गहरी हैं, इसका प्रमाण देती हैं।

इन परिस्थितियों के बीच सुप्रीम कोर्ट का हालिया रुख एक चेतावनी के रूप में सामने आया है। कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि भारत अवैध प्रवेश करने वालों के लिए लाल कालीन नहीं बिछा सकता। यह चेतावनी अचानक नहीं आई। यह दशकों से खुली सरहदों और राजनीतिक ढिलाई का नतीजा है। न्‍यायालय ने पूछा कि क्या इन लोगों को भारत सरकार ने शरणार्थी घोषित किया है। जब इसका जवाब न में मिला, तो अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि फिर कानून की दृष्टि से वे घुसपैठिये हैं। यह स्थिति साफ है और इसमें कोई दुविधा नहीं रहनी चाहिए।

न्‍यायालय की टिप्पणी वस्‍तुत: उस वास्तविकता की ओर सीधा संकेत है जिसे लगातार नजरअंदाज किया जाता रहा है। भारत के अपने नागरिक आज भी गरीबी, बेरोजगारी और संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। ऐसे में जो लोग अवैध तरीके से सीमा पार करके भारत में दाखिल होते हैं, वे सुरक्षा के लिए खतरा होने के साथ ही कहना होगा कि देश के सीमित संसाधनों पर भारी बोझ हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह सवाल कि क्या भारतीय नागरिकों की कीमत पर अवैध घुसपैठियों को संसाधन और लाभ दिए जाएँ, बिल्कुल उचित है। अदालत ने कहा कि भारत में भी बहुत गरीब लोग मौजूद हैं जिनके अधिकारों और जरूरतों की अनदेखी नहीं की जा सकती।

सबसे बड़ा खतरा सुरक्षा का है। घुसपैठिये बाड़ काटकर, नदी पार करके या नकली दस्तावेजों के सहारे भारत में आते हैं। इनमें से कई अपराधी, तस्कर या कट्टरपंथी संगठनों से जुड़े भी हो सकते हैं। कई बार ऐसे नेटवर्क पकड़े गए हैं। असम, बंगाल और दिल्ली में मिले फर्जी पहचान पत्र इस खतरे को और पुष्ट करते हैं। जब अवैध प्रवासी मतदाता सूची में घुसने लगते हैं, तब वे सिर्फ सुरक्षा पर हमला नहीं कर रहे होते हैं, वास्‍तव में ये लोकतंत्र की बुनियादी संरचना पर हमला होता है।

घुसपैठ का दूसरा बड़ा दुष्परिणाम आर्थिक और सामाजिक असंतुलन है। अवैध तरीके से बसे लोग सरकारी योजनाओं का लाभ ले लेते हैं, राशन कार्ड हासिल कर लेते हैं, मजदूरी पर प्रभाव डालते हैं और स्थानीय लोगों के रोजगार को प्रभावित करते हैं। उनके कारण मजदूरी दरें गिरती हैं और सरकारी संसाधनों पर दबाव बढ़ता है। शहरों में भीड़ और अवैध बस्तियों की बढ़ोतरी इसी का परिणाम है। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि अवैध प्रवासी जिस राज्य में बसते हैं वहाँ की जनसांख्यिकीय संरचना बदलने लगती है। असम, त्रिपुरा और बंगाल जैसे राज्यों में यह बदलाव अब साफ दिखने लगा है। यह बदलाव भविष्य में सामाजिक तनाव, राजनीतिक अस्थिरता और सांस्कृतिक संघर्ष की जमीन तैयार कर सकता है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा उत्तर प्रदेश में घर-घर घुसपैठियों की तलाश का आदेश बताता है कि यह समस्या आज सिर्फ पूर्वोत्तर या पूर्वी भारत तक सीमित नहीं रह गई है। अवैध प्रवासी अब देश के हर हिस्से में पहुँच चुके हैं। वे पहचान पत्र बनवा लेते हैं और धीरे-धीरे स्थायी बसावट की प्रक्रिया शुरू कर देते हैं। यह स्थिति पूरे प्रशासनिक ढांचे के लिए चुनौती बन चुकी है। फिर इन सबके बीच यह तर्क दिया जाता है कि निर्वासन केवल कानूनी प्रक्रिया के अनुसार हो। पर न्‍यायालय ने इसका सीधा और तार्किक उत्तर दिया आज दे दिया है । कोर्ट ने स्‍पष्‍ट कहा है कि पहले अवैध तरीके से सीमा पार की जाए और जब पकड़ में आएँ तो कहा जाए कि अब हमें भारतीय कानूनों का पूरा संरक्षण दिया जाए, यह तर्क स्वीकार नहीं किया जा सकता। कानून का दुरुपयोग और राष्ट्र के संसाधनों का दोहन किसी भी परिस्थिति में न्यायोचित नहीं है।

वास्‍तव में ऐसे में कहना यही होगा कि भारत को अब इस समस्या को केवल मानवीय दृष्टिकोण या राजनीतिक नफा नुकसान के चश्मे से देखने की पुरानी प्रवृत्ति छोड़नी होगी। यह समय निर्णायक कदम उठाने का है। सीमा प्रबंधन को तकनीकी रूप से और मजबूत बनाना होगा। अवैध दस्तावेज बनवाने वाले नेटवर्कों पर कठोर कार्रवाई करनी होगी। नागरिकता और शरणार्थी नीति को स्पष्ट और पारदर्शी बनाना होगा। साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों को एक समान नीति के तहत इस संकट से निपटना होगा।

घुसपैठ कोई साधारण समस्या नहीं है। यह एक धीमा विष है जो राष्ट्र की नसों में फैलता है। यह सुरक्षा को चोट पहुँचाता है, अर्थव्यवस्था को कमजोर करता है, सामाजिक माहौल को बदरंग करता है और लोकतांत्रिक संरचना को भीतर से खोखला करता है। सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी भारत के लिए समय पर आया हुआ सिग्नल है। अब यह सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे देश की सीमाओं को सुरक्षित करें और इस लगातार बढ़ती चुनौती को निर्णायक रूप से रोकें।

वस्‍तुत: आज ये सभी समझ लें कि भारत की मजबूती उसकी सीमाओं की सुरक्षा में है और घुसपैठ उन दीवारों में दरार डालने वाली अनदेखी आग है। इस आग को तुरंत बुझाना होगा अन्‍यथा यह मान कर चलें कि आने वाले वर्षों में इसका दुष्परिणाम भारत की स्थिरता और पहचान पर भारी पड़ सकता है। समस्‍या विकराल हो उससे पहले उसका निदान जरूरी है। अच्‍छा है न्‍यायालय उस दिशा में अपने कदम बढ़ा चुका है। ऐसे में जो मानव अधि‍कार के नाम पर हल्‍ला कर रहे हैं, उन्‍हें भी इन घुसपैठियों पर अपनी आंखें खोल लेनी चाहिए।