सुषमा स्वराज का प्रलाप

विपिन किशोर सिन्हा

भारत के पूर्व प्रधान मंत्री और विश्व राजनीति के शिखर पुरुष श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में एकबार दिव्य सुक्ति कही थी कि बोलने के लिए सिर्फ वाणी की आवश्यकता होती है, लेकिन चुप रहने के लिए वाणी और विवेक, दोनों की आवश्यकता होती है। उनके अस्वस्थ होने से छुटभैया नेताओं की बन आई है। भारतीय जनता पार्टी में नेताओं द्वारा बिना सोचे समझे वक्तव्य देने की जैसे प्रतियोगिता चल रही हो। अब इस क्लब में सुषमा स्वराज भी शामिल हो गई हैं। स्वामी रामदेव जी के समर्थकों पर रामलीला मैदान में गत वर्ष लाठी चार्ज के विरोध में भाजपा द्वारा राजघाट पर आयोजित धरने में सुषमा जी का नृत्य टीवी के माध्यम से पूरे देश ने देखा था। वह कही से भी विपक्ष की नेता, वह भी भाजपा की नेता की मर्यादा के अनुकूल नहीं था। जहां सारा देश बाबा रामदेव और उनके समर्थकों पर अर्द्धरात्रि में बर्बर पुलिसिया कार्यवाही से सदमे में था, सुषमा जी अपनी प्रसन्नता रोक नहीं पा रही थीं। उन्हें आनेवाले चुनावों में भाजपा के लिए अनुकूल अवसर दिखाई दे रहा था। अपनी प्रसन्नता को उन्होंने नृत्य के माध्यम से अभिव्यक्त किया। लगता है भाजपा विपक्ष में रहकर ज्यादा संतुष्ट है। अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन का सबसे अधिक लाभ भाजपा को ही मिलने की संभावना थी। उत्तर प्रदेश में मायावती के विरुद्ध भ्रष्टाचार विरोधी लहर पर सवार होकर भाजपा को सत्ता प्राप्त करने का सुनहरा अवसर समय ने स्वयं उपलब्ध कराया था लेकिन ऐन मौके पर मायावती सरकार के भ्रष्टतम मंत्री बाबू लाल कुशवाहा को पार्टी में शामिल कर भाजपा ने अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी मार ली। समय और समुद्र की लहरें किसी की प्रतीक्षा नहीं करतीं। बाजी समाजवादी पार्टी के हाथ में चली गई। एक कहावत है – सूत न कपास, जुलाहों में लठमलठ। उत्तर प्रदेश की ४०३ सदस्यों वाली विधान सभा में मात्र ४८ सीटें पाने वाली भाजपा में मुख्यमंत्री पद के लिए सर्वाधिक नेता कुश्ती लड़ रहे थे। यही स्थिति केन्द्र में है। जनाधारविहीन नेताओं ने भाजपा के संसदीय दल पर कब्जा कर रखा है। जिस पार्टी में अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, नितिन गडकरी, वेंकटैया नायडू, और राजनाथ सिंह जैसे नेताओं का वर्चस्व हो, उसे हराने के लिए किसी सोनिया, दिग्विजय, मुलायम या लालू की जरुरत नहीं है। अटल जी बिस्तर पर हैं और आडवानी जी उम्र के अन्तिम पड़ाव पर। बड़बोले नेताओं पर किसी का नियंत्रण नहीं है। तभी तो सुषमा जी ने गत २६ मार्च को अन्ना टीम को निशाना बनाते हुए संसद में सिर्फ कटाक्ष ही नहीं किया, बल्कि आन्दोलन की निन्दा भी की। सभी कांग्रेसी चुप थे, वे मज़ा ले रहे थे। उनका काम सुषमा जी कर रही थीं। लालू, मुलायम और शरद यादव के वक्तव्य को कोई गंभीरता से नहीं लेता, लेकिन विपक्ष की नेता के भाषण को यूं ही हवा में नहीं उड़ाया जा सकता। अरविन्द केजरीवाल ने गत २५ मार्च को जन्तर-मन्तर पर सभा को संबोधित करते हुए सांसदों पर जो टिप्पणी की थी, उसमें कुछ भी गलत नहीं था। क्या इस तथ्य को झुठलाया जा सकता है कि सुषमा जी जिसे लोकतंत्र का मन्दिर कहती हैं, उसकी शोभा मरते दम तक कुख्यात दस्यु-सुन्दरी फुलन देवी बढ़ाती रहीं।

स्विस बैंक कारपोरेशन ने दिनांक ३१.१०.११ को भारत सरकार को लिखे अपने पत्र में खाता संख्या के साथ दस शीर्ष भारतीयों के नाम मुहैय्या कराए हैं। पत्र के अनुसार राजीव गांधी के नाम १९८३५६ करोड़, ए. राजा के नाम ७८५६ करोड़, शरद पवार के नाम २८९५६ करोड़, पी. चिदम्बरम के नाम ३३४५१ करोड़, सुरेश कलमाडी के नाम ५५६० करोड़, करुणानिधि के नाम ३५००९ करोड़ तथा कलानिधि मारन के नाम १५०९० करोड़ रुपए जमा हैं। सांसदों की तरफदारी करने वाली सुषमा जी क्या यह बता सकती हैं कि उपरोक्त व्यक्तियों की तुलना में वीरप्पन, मलखान या दाउद छोटे नहीं दिखाई पड़ते? क्या यह सत्य नहीं है कि नरसिंहा राव की सरकार और २००८ में मनमोहनी सरकार को बचाने के लिए संसद भवन में करोड़ों का लेन-देन हुआ था? कुर्सियों और माइक से संसद और विधान सभाओं में एक-दूसरे को लहुलुहान करनेवालों को क्या कहा जाएगा – गौतम बुद्ध, महावीर, विवेकानन्द या ……….? मुख्य विपक्षी दल होने के नाते बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के देशव्यापी जनान्दोलन का सीधा लाभ भारतीय जनता पार्टी को ही मिलना तय था लेकिन सुषमा जी और उनकी मंडली ऐसे ही विवेकहीन बयान देते रहे, तो उत्तर प्रदेश की तरह केन्द्र में भी यह पार्टी अप्रासंगिक हो जाएगी। कही सोनिया जी और सुषमा जी में कोई मिलीभगत तो नहीं है?

7 COMMENTS

  1. सोनिया, राबडी, गोलमा, अम्बिका और मायावती से कई गुना बेहतर है सुषमा स्वराज. एक प्रखर वक्ता और बेदाग़ नेता. वह प्रलाप नहीं करती बल्कि गरजती हैं. शालीनता के साथ. उनको संसद में कई बार गरजते देखा है.
    लेकिन आज देश उनके और आँखे गडाए बैठा है. इसलिए उन्हें बहुत सावधानी से रहना चाहिये.

  2. जिस संसद में अनेक अपराधों के आरोपी जन प्रतिनिधि बने बैठे हों उस संसद के सम्मान की बात ……? कमाल है कि ये नेता कितनी बेशर्मी से कुछ भी कह लेते हैं ? अरे संसद की गरिमा की यदि थोड़ी भी चिंता है तो अपराधी, कलंकित सांसदों व मंत्रियों को संसद से बाहर करो. संसद की गरिमा को कलंकित तो तुम नेता स्वयं कर रहे हो. कोई सच बोलता है तो तिलमिलाने लगते हो. सर्वेक्षण करवा कर देख लो, ८०-९० % जनता एक स्वर से कहेगी कि संसद में बैठे अनेकों नेता भ्रष्ट हैं, सम्मान के योग्य नहीं हैं. है किसी नेता या सरकार में दम जो यह सर्वेक्षण करवाने का साहस हरे ? हर देशभक्त को बाबा रामदेव, अन्ना और केजरीवाल की आवाज़ में आवाज़ मिला कर कहना चाहिए कि संसद में बैठे अनेहों नेता व मंत्री भ्रष्ट हैं और संसद की गरिमा को कलंकित करने वाले हैं. फिर देखते हैं कि सुषमा जी और उनके समर्थक सांसद व संसद क्या कर लेती है.

  3. लेखक महोदय, लगता है आप विषय से भटक गए hein क्योंकि अप्पने बात शुरू की थी सुषमा स्वराज से लेकिन आगे चलकर विषय को घुमा दिया कृपया लेख को पूरा करें,

  4. एक बात समझ में नहीं आती कि संसद कि गरिमा होती है या सांसदों की.संसद तो ज्यों का त्यों पिछले साठ सालों से वैसा ही है पर यह बात और है कि सांसद पहले जैसे नहीं हैं मेरी उम्र भी उतनी ही है जितनी संसद कि है.और किशोरावस्था से ही संसदीय प्रक्रिया में रूचि लेता रहा हूँ पढ़ने कि शौक की वजह से. पर अब हालात को देख कर इन नेताओं के वक्तव्य से अरुचि हो रही है इसमें लग भग सभी दलों के लोगों को शामिल करना चाहूँगा.लेखक की बातों से मै सहमत हूँ कि वित्तीय अपराधो और नागरिक अपराधों के आरोपित सांसद किस तरह से संसद कि गरिमा बढ़ा रहे है क्या यह शुष्मा स्वराज या शरद यादव जैसे लोग बताएँगे शरद यादव संसद में असंसदीय भाषा का प्रयोग करते हुए देखे गए है इसे मैंने कई बार नोट किया है वे कहते हैं हम भी फ़कीर है काहे का फ़कीर हो आपसे ज्यादा सांसारिक तो हमें कोई दीखता नहीं
    मेरी राय में संसद रूपी मंदिर का भग्नावशेष तो है पर अब देवता निवास नहीं करते वहां मुझे तो वह एक शापित हवेली कि तरह लगती है जहाँ अतृप्त रूहें भटक रही हों और शोर मचा रही हों.सरदार पटेल ने साढ़े पांच सौ देसी राजाओं को राज्य विहीन किया वही राजाओं की रूहें ५५० सदस्यों के रूप में संसद में मौजूद है और चिल्ला चिल्ला कर कह रही है मेरा विशेषाधिकार मेरा विशेषाधिकार मुझे तो लगता है कह रही हों मेरा प्रीविपर्स मेरा प्रीविपर्स वे राजा ज्यादातर जन्मजात थे और ये भी करीब करीब वैसे ही है.वे राजा तो युध्हों में या किसी राजरोग से मरे या मर जाते थे पर ये राजा तो अनंत काल तक जीने की जीवेष्णा ले कर आये है यावत जीवेत सुखं जीवेत का दर्शन इनका आप्त वचन है कब्र में दोनों पैर लटके है पर सत्ता सुख कैसे छोड़े.भारत अब इण्डिया हो गया है और होना भी चाहिए क्यों कि भारत का अर्थ होता है जहाँ प्रकाश सदैव रहता हो.भा=प्रकाश,रत=सदैव रहना पर अब प्रकाश तो है नहीं यहाँ तो इण्डिया सब्द या कोई और शब्द इसे दे सकते है क्यों कि मुझे इण्डिया का मतलब मालूम नहीं है असदो मा सद गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय मृत्योर मा अमृतंगमय ऋषियों ने किन मनस्थितियो में गया था यह तो मुझे पता नहीं पर मै ईश्वर से आज कि परिस्थितियों में यही प्रार्थना दुहराऊँगा
    बिपिन कुमार सिन्हा

  5. सक्सेना जी आपकी बातों में बहुत दम है. सीधी, सच्ची और सही बात. साधुवाद !

  6. मुख्य विपक्षी दल होने के नाते बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के देशव्यापी जनान्दोलन का सीधा लाभ भारतीय जनता पार्टी को ही मिलना तय था लेकिन सुषमा जी?
    —————
    गडकरी जी, आप पढ़ रहे हैं?
    देश का भविष्य आप पर हैं|
    अवसर न चूकिए|

  7. विरोध करना तो एक मुखोटा है ,बाकि यह सब दल एक ही थैली के चट्टे बट्टे है.न तो इनका लोकपाल बिल से कुछ लेना देना है. न यह भ्रस्टाचार को मिटाना चाहते है.जब हर दल इसमें लिप्त हो तो वोह किस मुंह से इसका विरोध करेगा.बीजेपी के भी नेताओं की सम्पति कुछ कम नहीं है.
    कर्णाटक,मध्य प्रदेश में जिस तरह इस दल की सरकारें CORRUPTION में लिप्त होकर राज कर रहीं है ,तब सुषमा से क्या उम्मीद करना अनुचित ही होगा.

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