स्वामी विवेकानंद का मानवतावाद

डॉ. मनोज चतुर्वेदी

स्वामी विवेकानंद भारतीय चेतना एवं चिंतन के आधार स्तंभ थे। उनका संपूर्ण जीवन मानव जाति के सेवार्थ में व्यतीत हुआ। लेकिन उन्होंने सेवा का यह संकल्प स्वामी रामकृष्ण के श्री चरणों में बैठकर प्राप्त किया था। स्वामी जी के मन में भारत का भूत, वर्तमान तथा भविष्य तो था ही, पर वे योग की तरफ बढ़ते जा रहे थे। स्वामी जी की उक्त प्रस्थान के तरफ रामकृष्ण परमहंस का ध्यान ज्यों हीं गया। उन्होंने कहा, नरेंद्र (विवेकानंद) एक वटवृक्ष बनेगा। जिसके नीचे हजारों पक्षी घोसलों का निर्माण करेंगे। विवेकानंद का व्यक्तित्व तथा कृतित्व मूलत: आध्यात्मिक था तथा उस अध्यात्मिकता के माध्यम से जो कार्य उन्होंने किया वो सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षणिक के साथ-साथ पूर्ण रूपेण भारतीय जीवन-मूल्यों से आप्लवित था। दैवी भक्ति से प्रेरित होकर मानवजाति के हितार्थ जो कार्य उन्होंने किया वो अपने आप में मिसाल ही है। मुझे याद आ रही है जब मैं सर्वप्रथम स्वामी जी ‘समर नीति’ पुस्तक को पढ़ रहे थे। स्वामी विवेकानंद जी के संदर्भ में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था ”यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो स्वामी विवेकानंद का अध्ययन कीजिए। उनमें सबकुछ विधेयात्मक या भावात्मक कुछ भी नहीं ।” आज जब मैं 20 वर्षों के बाद स्वामी विवेकानंद, वर्तमान भारत पर विचार करती हूँ तो मुझे लगता है कि स्वामी जी एक अवतारी पुरुष थे। भारतीय संस्कृति तथा रामकृष्ण देव के संदेशों के प्रचारार्थ शून्य डिग्री तापमान पर भी विचलित नहीं हुए।

स्वामी जी की एक बात को हमें ध्यान रखने की जरूरत है कि जब उनको निम्न या नीच कहा गया तो उन्होंने कहा मैं ”यदि मैं अत्यंत नीच तथा चांडाल होता, तो मुझे और अधिक आनंद आता, क्योंकि मैं उस महापुरुष का शिष्य हूँ जिन्होंने सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण तथा सन्यासी होते हुए भी उस रात उस चांडाल का पैखाना हीं नही साफ किया, अपितु उसकी सेवा शुशुषा की। ताकि वे अपने को सबका दास बना सकें मैं उन्हीं महापुरुष के श्री चरणों को अपने मस्तक पर धारण किए हुए हूँ। वे ही मेरे आदर्श हैं। मैं उन्हीं आदर्श पुरुष के जीवन का अनुकरण करने की चेष्टा करूंगा। सबका सेवक बनकर ही एक हिंदू अपने को उन्नत करने की चेष्टा करता है।, स्वामी जी का यही मानवतावादी पक्ष है। जिसके बल पर संपूर्ण भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के दिलों पर वे राज कर रहे हैं।

भारत की संत परंपरा का एकमात्र लक्ष्य सामाजिक परिवर्तन एकाएक नहीं हो सकता। यह धीरे-धीरे ही संभव है। शंकराचार्य, रामानुजाचार्य तथा मध्वाचार्य से चलकर रामानंद की परंपरा तक यह आंदोलन चला। समाज एकाएक नहीं बदलता उसमें कुछ रूढ़ियां, कुछ परंपराएं तथा कुछ सामाजिक मूल्य एवं मानदंड जो सामाजिक परिवर्तन में बाधक होते हैं। समाज सुधारक एवं समाजसेवी निंदा में समय नहीं व्यतीत करते। वे यह नहीं कहते कि जो कुछ तुम्हारे पास है वो सभी फेंक दो तथा वह गलत है। स्वामी जी ने इन्हीं विचारों को आत्मसात किया था। स्वामी जी उस समय के जातिवादी व्यवस्था से सुपरिचित थे। आपका मानना था कि ब्राह्मण सात्विक प्रकृति के होते हैं। इसलिए वे आदर्श के पात्र हैं। वह आध्यात्मिक साधना में लिप्त एवं त्याग की मूर्ति होते हैं। ब्राह्मण के अंदर स्वार्थ नाम की कोई चीज नहीं होती। यदि हम राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के शब्दों में कहें – ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है, दया-धर्म जिसमें हो, वही पूज्य प्राणी है। क्षत्रिय भी वही, जिसमें भरी हो निर्भयता की आग सबसे श्रेष्ठ वही ब्राह्मण है, हो जिसमें तप-त्याग।

स्वामी जी का भी यही मानना था कि मेरा आदेश है – चुपचाप बैठे रहने से काम न होगा। निरंतर उन्नति के लिए चेष्टा करते रहना होगा। ऊंची से ऊंची जाति से लेकर नीची से नीची जाति के लोगों को भी ब्राह्मण होने की चेष्टा करनी होगी।

आज जहां चारों तरफ नारी स्वतंत्रता की बात हो रही है वहां आज से 80-90 वर्षों पूर्व स्वामी जी ने नारी मुक्ति के मार्ग को प्रशस्त किया। स्वामी जी स्त्री शिक्षा के कट्टर समर्थक थे। आपका माना था कि गृहस्थी रूपी गाड़ी के नियमित सुव्यवस्थित तथा सुदृढ़ जीवन के लिए स्त्री-शिक्षा परमावश्यक है। इसमें शिल्प, विज्ञान, गृहकार्य, स्वास्थ्य के साथ सैन्य विज्ञान एवं राजनीति में शिक्षा के साथ प्रत्यक्ष कार्य के बिना संभव नहीं है। आपका मानना था कि स्त्री को इतनी शिक्षा दे दी जाए कि वो स्वयं अपने जीवन का निर्माण कर सकें। वस्तुत: यह शिक्षा ही है जो आत्म-रक्षा और आत्मबल को उत्पन्न कर सकती है। स्वामी जी ने कहा – हम चाहते हैं कि भारतीय स्त्रियों को ऐसी शिक्षा दी जाए, जिससे वे निर्भय होकर भारत के प्रति अपने कर्तव्य को भलीभांति निभा सके और संघमित्रा, अहिल्याबाई और मीराबाई आदि भारत की महान देवियों द्वारा चलायी गयी परंपरा को आगे बढ़ा सकें एवं वीर प्रसू बन सकें।

कुल मिलाकर यदि यह कहा जाये कि स्वामी जी आधुनिक भारत के निर्माता थे, तो उसमें भी अतिशयोक्ति नहीं हो सकती। यह इसलिए कि स्वामी जी ने भारतीय स्वतंत्रता हेतु जो माहौल निर्माण किया उस पर अमिट छाप पड़ी। विचारों से ही प्रभावित होकर बंगाल के क्रांतिकारियों ने स्वतंत्रता का बिगुल फुंका तथा भारत माता स्वाधीन हुई। आज जब चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा है। ऐसे समय में स्वामी जी के मानवतावाद के रास्ते पर चलकर ही भारत एवं विश्व का कल्याण हो सकता है। वे बराबर युवाओं से कहा करते थे कि हमें ऐसे युवकों और युवतियों की जरूरत है जिनके अंदर ब्राह्मणों का तेज तथा क्षत्रियों का वीर्य हो। ऐसे पांच मिल जाये तो हम समाज को बदल डालें। युवा मित्रों! विवेकानंद को पढ़ने के साथ ही गुनने की जरूरत है। यह इसलिए कि वे हमें बुला रहे हैं कि आओ – आगे अपनी भारतमाता को देखो।

1 COMMENT

  1. डॉ. साहब की तरफ से स्वामी विवेकानंद के बारे बे बहुत अछि जानकारी दी गई. घन्यवाद.

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