विविधा अति सर्वत्र वर्जयेत् की प्रासंगिकता May 21, 2016 by डा. राधेश्याम द्विवेदी | 4 Comments on अति सर्वत्र वर्जयेत् की प्रासंगिकता डा. राधेश्याम द्विवेदी अति रूपेण वै सीता चातिगर्वेण रावणः। अतिदानाद् बलिर्बद्धो ह्यति सर्वत्र वर्जयेत्।। अत्यधिक सुन्दरता के कारण सीता हरण हुआ। अत्यंत घमंड के कारण रावण का अंत हुआ। अत्यधिक दान देने के कारण रजा बाली को बंधन में बंधना पड़ा। अतः सर्वत्र अति को त्यागना चाहिए।. अति कभी भी अच्छी नहीं होती फिर वह […] Read more » अति सर्वत्र वर्जयेत्