कला-संस्कृति अपसंस्कृति और उपभोक्तावाद के प्रवक्ता January 8, 2010 / January 8, 2010 by संजय द्विवेदी | 2 Comments on अपसंस्कृति और उपभोक्तावाद के प्रवक्ता “और आज छीनने आए हैं वे हमसे हमारी भाषा यानी हमसे हमारा रूप जिसे हमारी भाषा ने गढ़ा है और जो इस जंगल में इतना विकृत हो चुका है कि जल्दी पहचान में नहीं आता” हिंदी के प्रख्यात कवि स्व. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की ये पंक्तियां किन्हीं दूसरे संदर्भों पर लिखी गई हैं, लेकिन वह […] Read more » अपसंस्कृति उपभोक्तावाद