कविता
अपने काँटों से लगे, और पराये फूल !!
/ by प्रियंका सौरभ
प्रियंका सौरभ हाथ मिलाते गैर से, अपनों से बेजार।सौरभ रिश्ते हो गए, गिरगिट से मक्कार।। अपनों से जिनकी नहीं, बनती सौरभ बात !ढूंढ रहे वो आजकल, गैरों में औकात !! उनका क्या विश्वास अब, उनसे क्या हो बात !सौरभ अपने खून से, कर बैठे जो घात !! चूहा हल्दी गाँठ पर, फुदक रहा दिन-रात !आहट […]
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