आलोचना साहित्य और भाषण बाज नहीं चाहिए ! March 7, 2016 by कीर्ति दीक्षित | Leave a Comment कीर्ति दीक्षित क्षत विक्षत है भारत भूमि का अंग अंग बाणों से । त्राहि त्राहि का नाद निकलता है असंख्य प्राणों से । । दिनकर साहब की ये पंक्तियाँ आज के परिदृश्य में कितनी सफल होकर उतरती हैं, आज ये भारत भूमि यदि कोई मानवी रूप धारित किये होती तो कितने ही बार प्राण तज दिए […] Read more » और भाषण बाज नहीं चाहिए !