कविता गुलमोहर मुझे अच्छा लगने लगा है! May 12, 2014 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment -प्रवीण गुगनानी- गुलमोहर मुझे अच्छा लगने लगा है! उस दिन जो संगीत था, बड़ा ही मुखर-मुखर सा। उसमें लिखा था वो सन्देश, जिसे मैं पढ़ नहीं पाया था। तब जब वह समुद्री रेत पर लिखा हुआ था, कुछ ऊंगलिया थी थरथराती-कपकपातीं। जो चली थी उस रेत पर, चली थी, कई मीलों। लिखते हुए ऐसा कुछ, […] Read more » कविता कविता जीवन पर जीवन पर कविता