कविता साहित्य किलकि चहकि खिलत जात ! April 27, 2017 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment किलकि चहकि खिलत जात ! किलकि चहकि खिलत जात, हर डालन कलिका; बागन में फागुन में, पुलक देत कहका ! केका कूँ टेरि चलत, कलरव सुनि मन चाहत; मौन रहन ना चहवत, सैनन सब थिरकावत ! चेतन जब ह्वै जावत, उर पाँखुड़ि खुलि पावत; अन्दर ना रहि पावत, बाहर झाँकन चाहत ! मोहत मोहिनी होवत, […] Read more » किलकि चहकि खिलत जात