कविता केवल अमलतास September 19, 2014 by सुरेश हिन्दुस्थानी | Leave a Comment ऊँघते/ अनमने उदास झाड़ियों के बीच इठलाता अमलतास चिड़ाता जंगल को जंगल के पेड़ों को, जिनके झर गए पत्ते सारे लेकिन पीले पुष्प गुच्छों से आच्छादित अमलतास आज भी श्रंगारित है, उसे नाज है अपने रूप पर अपने फूलने पर, पर क्या – उसका यह श्रंगार स्थायी है/ नहीं शायद इस सनातन सत्य को भूल […] Read more » केवल अमलतास