कविता
हा! ये कैसे हुआ ? सोचो, क्यू हो गया ??
by अरुण तिवारी
मकां बनते गांव झोपङी, शहर हो गई, जिंदगी, दोपहर हो गई, मकां बङे हो गये, फिर दिल क्यांे छोटे हुए ? हवेली अरमां हुई, फिर सूनसान हुई, अंत में जाकर झगङे का सामान हो गई। जेबें कुछ हैं बढी मेहमां की खातिर फिर भी टोटे हो गये, यूं हम कुछ छोटे हो गये। हा! ये […]
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