व्यंग्य साहित्य गधे ने जब मुंह खोला October 10, 2015 by अशोक गौतम | Leave a Comment मैंने रोज की तरह लाला दयाराम की बरसों से बन रही हवेली के लिए सूरज निकलने से पहले अपने पुश्तैनी गधे के पोते के पड़पोते पर रेत ढोना शुरू कर दिया था। जहां तक मेरी नालिज है न गधे के पुरखों ने मेरे पुरखों से इस रिश्ते के बाबत कोई शिकायत की थी और न […] Read more » गधे ने जब मुंह खोला