कविता
गिद्ध का बयान
/ by के.डी. चारण
(अचानक एक मटमैले और कुरूप से पक्षी का प्रवेश होता है, वहां उपस्थित लोग चौक जाते है।) क्या हुआ ? चौक गये………..? मुझे देखकर………. अरे! मैं भी मूर्ख हूं, कई दिनों बाद देखा होगा, मेरी प्रजाति का वंशज, मैं गिद्ध हूं, मिट्टी का भक्षक, कालचक्र का अदना सा राही, चौकिए मत…….. एक सच बयान करना था, […]
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