कविता साहित्य कबहू उझकि कबहू उलटि ! March 15, 2016 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment कबहू उझकि कबहू उलटि ! कबहू उझकि कबहू उलटि, ग्रीवा घुमा जग कूँ निरखि; रोकर विहँसि तुतला कभी, जिह्वा कछुक बोलन चही ! पहचानना आया अभी, है द्रष्टि अब जमने लगी; हर चित्र वह देखा किया, ग्रह घूम कर जाना किया ! लोरी सुने बतियाँ सुने, गुनगुनाने उर में लगे; कीर्तन भजन मन भावने, लागा […] Read more » poem by gopal baghel कबहू उझकि कबहू उलटि ! चहकित चकित चेतन चलत