कविता साहित्य तुहिन के तीर बिफर ! February 4, 2016 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment तुहिन* के तीर बिफर, धरा पर जाते बिखर; भूमि तल जाता निखर, प्राण मन होते भास्वर ! पुष्प वत आते कभी, गगन में छा के कभी; मोहते नयना जभी, मोह छुड़वाते तभी ! धवल छवि धर के ज़मीं, ध्यान में लेती गुणी; कणी को करती मणि, ऋणी हो जाते धनी ! सहजता उर में भरे, […] Read more » तुहिन के तीर बिफर !