कविता साहित्य नयन विच निहारिका ! February 13, 2016 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment नयन विच निहारिका, दिखाती अपनी छटा; अधर अमृत की वर्षा, हर्ष ज्योतिर्मय घटा ! छिटकती छवि की आभा, नज़र की विपुल विधा; रिझाती ऋतम्भरा, हुए शिशु स्वयम्वरा ! पिंगला इड़ा क्रीड़ा, सुषुम्ना स्मित मना; झाँकती विश्व लहरियाँ, झूल कर माँ की बहियाँ ! श्वाँस हर आहट पा के, प्राण की चाहत ताके; खोल नैनन वो […] Read more » नयन विच निहारिका !