राजनीति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दोषी ठहराने का दांव उल्टा पड़ा June 29, 2022 / June 29, 2022 by प्रमोद भार्गव | Leave a Comment गुजरात दंगे शीर्ष न्यायालय का फैसला प्रमोद भार्गव आखिरकार गुजरात के सांप्रदायिक दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को फंसाने का दांव याचिकाकर्ताओं और उसके उत्प्रेरकों को ही उल्टा पड़ गया। अब प्रमुख साजिशकर्ता तीस्ता शीतलवाड़ और आईपीएस आरबी श्रीकुमार पुलिस हिरासत में हैं। जकिया जाफरी ने एसआईटी रिपोर्ट के विरुद्ध शीर्ष न्यायालय में याचिका दायर की थी। दरअसल इन दंगों में जकिया के पति एहसान जाफरी की मौत हो गई थी। इन दंगों के लिए नरेंद्र मोदी को दोषी ठहराने की मांग न्यायालय से की गई थी। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने न केवल इस मांग को खारिज कियाए बल्कि एसआईटी की जांच और एसआईटी द्वारा मोदी को दी गई क्लीन चिट को सही ठहराया। अलबत्ता न्यायालय ने तीखा रुख अपनाते हुए टिप्पणी की कि ष्यह याचिका कड़ाही को खौलाते रहने की मंशा से दायर की गई है। जाहिर है, इसके पीछे का इरादा गलत है। अतएव इस प्रक्रिया में शामिल सभी लोगों को कटघरे में खड़ा करने की जरूरत है। ऐसे लोगों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही जरूरी है।यह टिप्पणी न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अगुवाई वाली पीठ ने 452 पृष्ठ के फैसले में करते हुए कहा है कि जकिया की याचिका किसी दूसरे के निर्देशों से प्रेरित है। जकिया याचिका के बहाने परोक्ष रूप से अदालत में विचाराधीन मामलों में दिए गए फैसलों पर भी प्रश्नचिन्ह लगा रही हैं। ऐसा क्यों कियाए यह उन्हें पता है। स्पष्ट रूप से उन्होंने किनके इशारे पर ऐसा कियाए यह जांच का विषय है जिसे किया जाना आवश्यक है। 2002 में राजधानी अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार से जुड़े मामले में विशेष जांच दल अदालत ने फैसला सुनाया था। अहमदाबाद में हुए दंगों के 14 साल बाद यह फैसला आया था। यह मामला कांग्रेस के पूर्व सांसद अहसान जाफरी समेत 69 लोगों की हत्या से जुड़ा था। बहुचर्चित इस मामले में विशेष जांच दल ने 66 आरोपियों को नामजद किया था। इनमें से 24 आरोपियों को दोषी और 36 को निर्दोष करार दिया गया था। 24 में से 11 को अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत हत्या का दोषी पाया। बांकी 13 को इससे कमतर अपराधों का दोषी माना था। कुल आरोपियों में से 6 की मौत फैसला आने से पहले ही हो चुकी थी। इस फैसले की सबसे अहम बात यह रही कि किसी भी आरोपी को धारा 120.बी के तहत पूर्व नियोजित साजिश का दोषी नहीं पाया गया था। अदालत ने इस संदर्भ में स्पष्ट रूप से कहा था कि उपद्रवी भीड़ ने जो कुछ भी कियाए वह क्षणिक या तात्कालिक उत्तेजना के चलते किया। दरअसल कांग्रेस समेत जो भी वामपंथी दलए विदेशी धन से पोषित चंद एनजीओ और बौद्विक धड़े थे जिन्होंने अपने बयानों और छद्म लेखन से यह धारणा रचने की पुरजोर कोशिश की थी कि गुजरात.दंगे तात्कालिक सत्तारूढ़ दल के षड्यन्त्र का परिणाम हैं। साफ है ये तथाकथित छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी नगरीय बौद्धिक इस मुगालते में थे कि उनकी मन.गढ़ंत धारणाएं नरेंद्र मोदी को संदेह के घेरे में ले लेंगी क्योंकि इस भयावह दंगों के समय नरेंद्र मोदी ही गुजरात के मुख्यमंत्री थे। गुजरात दंगों की पृष्ठ भूमि में गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के कोच एस.6 में सवार 58 कारसेवकों को निमर्मरतापूर्वक जिंदा जलाने की घटना थी। इसकी स्वाभाविक प्रतिक्रिया के चलते 28 फरवरी 2002 को पूरे गुजरात में सांप्रदायिक माहौल खराब हो गया था। नतीजतन अहमदाबाद के मेघानी नगर क्षेत्र की गुलबर्ग आवासीय सोसायटी की इमारतों पर क्षणिक रूप से उत्तेजित होकर 400 लोगों की भीड़ ने हमला बोल दिया था। हमले में कांग्रेस के पूर्व सांसद जाफरी समेत 69 लोग मारे गए थे। मरे लोगों में 39 लोगों के शव तो मिल गए थे लेकिन बाकी 30 की लाश नहीं मिली थीं। नतीजतन इन्हें सात साल बाद कानूनी परिभाषा के अनुसार मृत मान लिया गया। गुलबर्ग के अलावा नरोदा पटिया, बेस्ट बेकरी और सरदारपुर में भी भीषण हिंसक वारदातें घटी थीं। इन घटनाओं पर नियंत्रण नहीं कर पाने के कारण गुजरात की तत्कालीन नरेंद्र मोदी सरकार पर ये आरोप मढ़ने की कोशिशें हुई थीं कि उसने दंगों को उकसाने का काम किया था। दंगों के ठंडे पड़ने के बाद राज्य सरकार पर ये आरोप भी लगे थे कि वह आरोपियों को बचाने के सबूतों को नष्ट करने और कानूनी प्रक्रिया को कमजोर करने में लगी है। यही नहीं 2007 अक्टूबर में एक स्ंिटग ऑपरेशन के जरिए भी यही कोशिश की गई थी कि दंगे पूर्व नियोजित षड्यंत्र का हिस्सा हैं। वहीं आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट और आरबी कुमार ने यह बेबुनियाद फर्जी दावा भी किया कि वे मुख्यमंत्री की उस बैठक में उपस्थित थे, जिसमें कथित तौर पर दंगों का षड्यंत्र रचा गया था। एसआईटी ने इस दावे को अपनी जांच में नितांत झूठा ठहराया है। इसी तरह एक झूठ यह भी गढ़ा गया कि मोदी ने मुख्यमंत्री रहते हुए दंगों को रोकने की दृष्टि से गंभीर प्रयास नहीं किए। इस सिलसिले में शीर्ष न्यायालय ने यह कहकर साफ किया है कि ष्पुलिस की कमी के बावजूद मुख्यमंत्री ने दंगों को रोकने की पूरी कोशिश की और उचित समय पर केंद्रीय सुरक्षा बलों एवं सेना को बुलाने की मांग की। साथ ही शांति बनाए रखने के लिए अनेक बार सद्भाव पूर्ण अपीलें भी की। याद रहे एसआईटी का गठन शीर्ष न्यायालय ने ही किया था। इस कार्यवाही पर आशंका प्रकट करने वालों में राष्ट्रीय मानवाधियकार आयोग भी था। अंत में आयोग सरकारी संगठन सिटिजंस फाॅर जस्टिस एंड पीस और जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी ने भी अदालत से पुनर्जांच की मांग की थी। याचिकाकर्ताओं की इस मांग पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने गुलबर्गए नरोदा और सरदारपुर जैसे 10 बड़े नरसंहरों से जुड़े मामलों पर निचली अदालतों में चल रही न्यायिक प्रक्रिया पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी। साथ ही राज्य सरकार को निर्देशित […] Read more » Prime Minister Narendra Modi Keeping guilty Battle Upside down नरेंद्र मोदी को दोषी ठहराने का दांव