कविता नीड़ October 4, 2013 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment तिनके, पत्ते थे साथ चुने धागे थे अरमानों के बुने हल्का झोंका भी सह न सका सूखे पत्तों सा बिखर गया वह नीड़ अचानक उजड़ गया। हमने, तुमने मिलकर जिसकी रचना की थी अपने खूं से सपना ही कहें तो अच्छा है जब आंख खुली तो सिहर गया वह नीड़ अचानक उजड़ गया। गलती मेरी […] Read more » नीड़