कविता परछाइयां March 16, 2012 / March 16, 2012 by नरेश भारतीय | Leave a Comment नरेश भारतीय कल के सच की परछाइयां आज के झूठ को जब सच मानने से इन्कार करतीं हैं तो बीते कल की अनुभूतियां जीवंत हो उठती हैं जीवन सत्य को जो रचती रहीं – मैं नहीं जानता आज के जीवन सत्य कितनी गहराइयों में पैठ कर घोषित किए गए हैं और यह भी कि क्या […] Read more » poem-parchhatetan परछाइयां