कविता परिंदे और प्रवासी मजदूर April 21, 2020 / April 21, 2020 by कैलाश सत्यार्थी | Leave a Comment कैलाश सत्यार्थी मेरे दरवाज़े के बाहर घना पेड़ था, फल मीठे थे कई परिंदे उस पर गुज़र-बसर करते थे जाने किसकी नज़र लगी या ज़हरीली हो गईं हवाएं बिन मौसम के आया पतझड़ और अचानक बंद खिड़कियां कर, मैं घर में दुबक गया था बाहर देखा बदहवास से भाग रहे थे सारे पक्षी कुछ बूढ़े […] Read more » परिंदे और प्रवासी मजदूर