कविता कविता / भ्रांति January 26, 2011 / December 15, 2011 by डॉ. मधुसूदन | 5 Comments on कविता / भ्रांति चीखो, चिल्लाओ, नारा लगाओ। सुनता हमारी कौन है? (सारे बोलने में व्यस्त है।) इसी के अभ्यस्त है। लिखो लिखो झूठा इतिहास। हमारा भी नहीं विश्वास। पढ़ता उसे कौन है ? चीखो, चिल्लाओ, नारा लगाओ। करना धरना कुछ, नहीं। नारा लगाना कार्य है। नारा लगाना क्रांति है। यही तो भ्रांति है। हिंदू संस्कृति मुर्दाबाद। वेद वेदांत, […] Read more » poem by Pr.Madhusudan कविता भ्रांति