विविधा मन के खेल निराले मेरे भैय्या ! February 3, 2014 by डा. अरविन्द कुमार सिंह | 1 Comment on मन के खेल निराले मेरे भैय्या ! -डॉ. अरविन्द कुमार सिंह- नीत्शे से किसी ने एक बार पूछा- तुम हमेशा हंसते रहते हो, प्रसन्न रहते हो। नीत्शे ने कहा- ‘‘अगर तुमने पूछ ही लिया है तो मैं असलियत भी बता दूं। मैं इसलिये हंसता रहता हूं कि कहीं रोने न लगूं। आदमी बिल्कुल वैसा नहीं है, जैसा दिखाई पड़ता है। भीतर […] Read more » Human natute soul मन के खेल निराले मेरे भैय्या !