कविता मानव हो मानव बने रहो November 3, 2012 / November 3, 2012 by बीनू भटनागर | 1 Comment on मानव हो मानव बने रहो हर जड़ चेतन का उद्गम प्रकृति, हमने उसको भगवान कहा, तुमने उसको इस्लाम कहा या केश बांध ग्रंथ साब कहा, या फिर प्रभु यशु महान कहा। पशु पक्षी हों या भँवरे तितली, वट विराट वृक्ष हो चांहे हो तृण, या हों सुमन सौरभ और कलियाँ, हाथी विशाल हो या सिंह प्रबल या हों जल […] Read more » मानव हो मानव बने रहो