कविता मुखौटा September 9, 2022 / September 9, 2022 by लक्ष्मी अग्रवाल | Leave a Comment मुखौटों का शहर है यह जनाब !यहाँ चेहरे पर ‘हर कोई सजाए बैठा है हिज़ाब।बड़ी लाजबाव चीज है यहगुण हैं इसके बेहिसाब। चेहरे पर डाल देता है यहएक आकर्षक आवरणअसलियत छिपाने का नहीं कोईइससे बेहतर माध्यम। चेहरे की धूर्तता छिपाते यहबड़ी आसानी सेसजाकर इसको पाखंडी भी लगतेसज्जन-दानी से। किसी के अश्कों को बड़ी संजीदगीसे छिपा […] Read more » मुखौटा
कविता कविता / मुखौटे वाला July 19, 2011 / December 8, 2011 by आर. सिंह | Leave a Comment पहले भी वह मुखौटे बेचता था. तरह तरह के मुखौटे बेचता था. किसिम किसिम के मुखौटे बेचता था. दूकान थी उसकी नुक्कड़ के कोने में. मुखौटे बनाता भी वह खुद था. कितने अच्छे थे उसके मुखौटे राम को मुखौटा लगा दो वह रावण बन जाता. रावण को मखौटा लगाया वह बन गया राम. दूकान थी […] Read more » Mask मुखौटा