कविता
मृगनयनी
/ by कुलदीप प्रजापति
“मृगनयनी तू किधर से आई, काली मावस रातों में, क्यों उलझाती मेरे मन को, प्यार की झूठी बातों में।।“ रंग-रूप आंदोलित करता हलचल होती कुछ मन में, उसके स्पर्शन का जादू कम्पन भर जाता तन में, हार दिख रही प्रतिपल मुझको, उनकी तीखी घातों में, क्यों उलझाती मेरे मन को, प्यार की झूठी बातों में।। […]
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