कविता
मैं देह नहीं हूंमैं देह से परे हूं
/ by विनय कुमार'विनायक'
—विनय कुमार विनायकमैं देह नहीं हूं, मैं देह से परेहूं,मैं अंगनहीं,मैंअंगको धरे हूं,मैं नेह,मैं स्नेह,मैं विशेषण हूं,मैं देह काअंग,कदापिनहीं हूं, मैं दिल नहीं हूं, मैं दिलवर हूं!मैं ह्रदय नहींहूं,मैंसुह्रदवर हूं! मैंहाथ नहींहूं,किन्तुहाथ मेरा,मैंकाननहीहूं,किन्तुकान मेरा,मैंआंखनहीं हूं,पर आंखमेरा! मैं पैर नहीं हूं,मैंवैर नहीं हूं,मैं वैर,सुलह,सफाई से परे हूं!ये सबकुछ दैहिक धर्म होते हैं! मैं देह से हटकर,देह […]
Read more »