धर्म-अध्यात्म यशोदानंदन-५ February 14, 2015 / February 14, 2015 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment “महर्षि! श्रीकृष्ण का मथुरा में प्रवेश से लेकर कंस-वध का संपूर्ण वृतांत का आप अपने श्रीमुख से मुझे सुनाकर अनुगृहीत करने की कृपा करेंगे? मेरा हृदय, मेरा रोम-रोम, मेरा समस्त अस्तित्व अपने प्रिय पुत्र के कुशल-क्षेम के लिए व्याकुल है। मुझपर कृपा कीजिए महर्षि, मुझपर कृपा कीजिए” “श्रीकृष्ण के चरित्र और कृत्य को सुनने-सुनाने से […] Read more » यशोदानंदन यशोदानंदन-५
धर्म-अध्यात्म यशोदानंदन-४ February 13, 2015 / February 13, 2015 by विपिन किशोर सिन्हा | 1 Comment on यशोदानंदन-४ गर्गाचार्य के पास कोई विकल्प शेष नहीं रहा। उन्होंने समस्त उपस्थित जन समुदाय को अपना-अपना स्थान ग्रहण करने का निर्देश दिया और स्वयं अपना आसन ग्रहण करने के पश्चात्अपना कथन आरंभ किया – “पुत्री यशोदा और प्रिय नन्द जी! तुम दोनों समस्त शरीरधारियों में अत्यन्त भाग्यशाली और स्राहनीय हो। जो अवसर सृष्टि के आरंभ […] Read more » यशोदानंदन
धर्म-अध्यात्म यशोदानंदन-३ February 12, 2015 / February 12, 2015 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment महर्षि की बातें यशोदा जी बड़े ध्यान से सुन रही थीं। जैसे ही ऋषिवर ने अपना कथन समाप्त किया उनके मुखमंडल पर एक विशेष आभा प्रकट हुई। नेत्रों में एक चमक आ गई। अधरों पर एक पवित्र स्मित-रेखा ने स्थान बना लिया। परन्तु विह्वलता कम नहीं हुई। परिचारिकाओं की सहायता से वे पर्यंक पर […] Read more » यशोदानंदन
धर्म-अध्यात्म यशोदानंदन-२ February 11, 2015 / February 11, 2015 by विपिन किशोर सिन्हा | 2 Comments on यशोदानंदन-२ सेवकों ने दोनों पर्यंकों को पास ला दिया। यशोदा जी की दृष्टि जैसे ही पति पर पड़ी, वे बोल पड़ीं – “कहाँ छोड़ आए मेरे गोपाल को …………?” आगे बोलने के पूर्व ही वाणी अवरुद्ध हो गई। नेत्रों ने पुनः जल बरसाना आरंभ कर दिया। नन्द जी कातर नेत्रों से श्रीकृष्ण की माता को देखे […] Read more » यशोदानंदन