कविता
लगाये कितने क़यास !
by गोपाल बघेल 'मधु'
लगाये कितने क़यास, जानने अपना सकाश; उड़ने आकाँक्षा का आकाश, अथवा पाने कुछ अवकाश ! जानने निज इतिहास, पहचानने मृदु हास; करने कभी अट्टहास, जानने अपना अहसास ! आम्र मुकुल का सुहास, भ्रमर का बढ़ता साहस; करा देता कुछ प्रयास, दिखा देता आत्म प्रकाश ! आशाओं से भरा सन्देश, आलोकित होजाता अनायास; आलोक का लोक आवास, लोकातीत को दे जाता सुवास ! उद्घोष से उत्प्रेरित श्वाँस, बदल जाती शरीर का लिवास; ‘मधु’ का बढ़ जाता विश्वास, त्रिलोकी में हो जाता निवास !
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