कविता
लहू में घुले कांटे
by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो
-मनु कंचन- हवा टकरा रही थी, मानो मुझे देख मुस्कुरा रही थी, सूखे पत्ते जो पड़े थे, संग अपने उन्हें भी टहला रही थी, मेरे चारों ओर के ब्रह्माण्ड को, कुछ मादक सा बना रही थी, मैं भूला वो चुभे कांटे, जो पांव में कहीं गढ़े थे, अब तो शायद, वो लहू के संग रगों […]
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