कविता साहित्य वह गोद मेरी लेट कर ! February 25, 2016 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment वह गोद मेरी लेट कर, ताके सकल सृष्टि गया; मेरी कला-कृति तक गया, झाँके प्रकृति की कृति गया ! देखा कभी मुझको किया, लख दूसरों को भी वह गया; मन की कभी कुछ कह गया, वह सुने सब उर सुर गया ! प्राय: पलट सहसा उलट, वह अनेकों लीला किया; मन माधुरी से भर दिया, […] Read more » वह गोद मेरी लेट कर !