कविता साहित्य वाँशुरी ऐसी बजाई मोहन ! October 24, 2016 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment वाँशुरी ऐसी बजाई मोहन, लूटि कें लै गए वे मेरौ मन; रह्यौ कोरौ सलौनौ सूने- पन, शून्य में झाँकतौ रह्यौ जोवन ! चेतना दैकें नचायौ जीवन, वेदना दैकें वेध्यौ आपन-पन; कलेवर क्वारे लखे कोमल-पन, कुहक भरि प्रकटे विपिन बृन्दावन ! मधुवन गागरी मेरी झटके, मोह की माधुरी तनिक फुरके; पुलक-पन दै गए पलक झपके, नियति […] Read more » वाँशुरी ऐसी बजाई मोहन !