कविता साहित्य विकृतियाँ समाज की May 2, 2016 by राघवेन्द्र कुमार 'राघव' | Leave a Comment राघवेन्द्र कुमार राघव मेरे मन की बेचैनी को, क्या शब्द बना लिख सकते हो ? तक़लीफ़ें अन्तर्मन की, क्या शब्दों मे बुन सकते हो ? लिखो हमारे मन के भीतर, उमड़ रहे तूफ़ानों को । लिखो हमारे जिस्मानी, पिघल रहे अरमानों को । प्यास प्यार की लिख डालो, लिख डालो जख़्मी रूहें । लिखो ख़्वाहिशों […] Read more » विकृतियाँ समाज की